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________________ ६९२ भगवती आराधना 'तो सो खवगो' ततोऽसौ क्षपकः तदनुशासनं श्रुत्वा जातसंवेग उत्थाय आचार्य वंदते विनयेन प्रणताङ्गः ॥१४७५।। भंते सम्मं गाणं सिरसा य पडिच्छिदं मए एदं । जं जह उत्तं तं तह' करेमि विणओ तदो भणइ ॥१४७६॥ 'भत्ते सम्म गाणं' भगवन् सम्यग्ज्ञानं एतच्छिरसा मया परिगृहीतं । यद्यथोक्तं भवद्भिस्तथा करिष्यामि इति वदति ॥१४७६।। अप्पा णिच्छरदि जहा परमा तुट्ठी य हवदि जह तुज्झ । जह तुज्झ य संघस्स य सफलो य परिस्समो होइ ॥१४७७॥ 'अप्पा णिच्छर दि जहा' अहं यथा निस्तीर्णो भवामि संसारात् । यथा युष्माकं परमा तुष्टिर्भवति । भवतां संघस्य चास्मदनुग्रहे प्रवृत्तानां श्रमस्य फलं भवति ॥१४७७।। जह अप्पणो गणस्य य संघस्स य विस्सुदा हवदि कित्ती । संघस्स पसायेण य तहहं आराहइस्सामि ।।१४७८।। 'जह अप्पणो गणस्स य' यथा मम गणस्य संघस्य च कीर्तिविश्रुता भवति तथाहमाराधयिष्यामि संघस्य प्रसादेन ।।१४७८॥ वीरपुरिसेहिं जं आयरियं जं च ण तरंति कापुरिसा । मणसा वि विचिंतेदुं तमहं आराहणं काहं ॥१४७९।। 3वीरपुरिसेहिं वीरैः पुरुषर्या आचरिता, यां च न शक्नुवन्ति कापुरुषा मनसापि चिन्तयितुं तादृशीमाराधनामहं करिष्यामि ॥१४७९॥ गा०-और कहता है-भगवन् ! मैंने आपके द्वारा दिया सम्यग्ज्ञान सिर नवाकर स्वीकार किया । आपने जो-जो जिस प्रकार कहा है मैं वैसा ही करूँगा ।।१४७६।। गा०—जिस प्रकारसे मैं संसारसे पार उतरूँ, जिस प्रकारसे आपको परम सन्तोष हो, मेरे कल्याणमें संलग्न आपका और संघका परिश्रम जिस प्रकारसे सफल हो ॥१४७७|| गा०—जिस प्रकार मेरी और संघकी कीर्ति फैले, मैं संघकी कृपासे उस प्रकार रत्नत्रयकी आराधना करूँगा ॥१४७८|| गा०-वीर पुरुषोंने जिसका आचरण किया है, कायर पुरुष जिसकी मनमें कल्पना भी नहीं कर सकते, मैं ऐसी आराधना करूंगा ॥१४७९।। १. तह काहेत्तिय सो तदो -मु० । २, ३, ४. धीर -मु० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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