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________________ भगवतो आराधना 'जो अप्पसुक्खहेदु' योऽल्पसुखनिमित्तं निदानं करोति परमे मुक्तिसुखे अनादरं कृत्वा । स काकण्या विक्रोणीते मणि बहुकोटिशतमल्यम् ।।१२१५।। सो भिंदइ लोहत्थं णावं भिंदइ मणि च सुत्तत्थं । छारकदे गोसीरं डहदि णिदाणं ख जो कुणदि ।।१२१६॥ 'सो भिदइ' स भिनत्ति कीललोहार्थं नावं अनेकवस्तुभृतां । भिनत्ति रत्नं च सूत्रार्थ । गोशीर्ष चन्दनं दहति भस्मार्थ यो निदानं करोति स्वल्पार्थ । सारविनाशसाधादभेदमाचष्टे-सपकारोपरि कथा यो निदानकारी, तेन नौप्रभृतिकं विनाशितं । अर्थाख्यानकानि वाच्यानि ॥१२१६॥ कोढी संतो लद्ध ण डहइ उच्छु रसायणं एसो । सो सामण्णं णासेइ भोगहेदूं णिदाणेण ।।१२१७।। 'कोढी संतो' कुष्ठी सन् रसायनभूतमिद्धं लब्ध्वा दहति यः समानतां नाशयति सर्वदुखव्याधिविनाशनोद्यतां भोगार्थनिदानेन ॥१२१७।। पुरिसत्तादिणिदाणं पि मोक्खकामा मुणी ण इच्छंति । जं पुरिसत्ताइमओ भवो भवमओ य संसारो ॥१२१८॥ 'पुरिसत्तादिणिदाणंपि' पुरुषत्वादिनिदानमपि मोक्षाभिलाषिणो मुनयो न वाञ्छन्ति । यस्मात्पुरुषत्वादिरूपो भवपर्यायः । भवात्मकश्च संसारः भवपर्यायपरिवर्तस्वरूपत्वात् ॥१२१८॥ दुक्खक्खयकम्मक्खयसमाधिमरणं च बोधिलाभो य । एयं पत्थेयव्वं ण पत्थणीयं तओ अण्णं ॥१२१९।। गा०-जो मुक्तिके उत्कृष्ट सुखका अनादर करके अल्पसुखके लिए निदान करता है वह करोड़ों रुपयोंके मूल्यवाली मणिको एक कौड़ीके बदले बेचता है ।।१२१५।। गा०-जो निदान करता है वह लोहेकी कोलके लिए अनेक वस्तुओंसे भरी नाव कोजो समुद्र में जा रही है तोड़ता है, भस्मके लिए गोशीर्षचन्दनको जलाता है और धागा प्राप्त करनेके लिए मणिनिर्मित हारको तोड़ता है। इस तरह जो निदान करता है वह थोड़ेसे लाभके लिए बहुत हानि करता है। एक सूपकारने अपनी मूर्खतासे अपनी नाव नष्ट कर डाली थी । इनकी कथाएँ ( कथाकोशोंसे ) जानना ।।१२१६|| ___ गा०—जैसे कोई कोढ़ी मनुष्य अपने रोगके लिए रसायनके समान ईखको पाकर उसे जलाकर नष्ट करता है वैसे ही भोगके लिए निदान करके मूर्ख मुनि सर्व दुःख और व्याधियोंका विनाश करनेमें तत्पर मुनि पदको नष्ट करता है ।।१२१७॥ गा०-मोक्षके अभिलाषी मुनिगण 'मैं मरकर पुरुष होऊँ' या मेरे वज्रऋषभनाराच संहनन आदि हो, इस प्रकारका भी निदान नहीं करते। क्योंकि पुरुष आदि पर्याय भवरूप है और भवपर्यायका परिवर्तन स्वरूप होनेसे संसार भवमय है। अर्थात् नाना भवधारण करने रूप ही तो संसार है ।।१२१८॥ १. सूत्रकारोन्परिथा-अ० ज० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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