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________________ विजयोदया टीका ६०७ यस्मात्समितिषु प्रवर्तमानो न बध्यते, पापेन मुच्यते । असमितस्तु महता बध्यते कर्मसमूहेन 'तम्हा' तस्मात् । 'चेट्टिदुकामो' गमनभाषणाद्यभिलाषी । 'जइया तइया' यदा तदा। 'तं' भवान् 'समिदो भवाहि समितिपरो भवेति निर्यापकसूरिराह क्षपकं । 'समिदो खु' समितः सम्यक्प्रवृत्तः ईर्यादिषु । 'अण्णमण्णं कर्म' अन्यत् अन्यत् । प्रत्यग्रं । 'णादियवि' नैवादत्ते । 'स्ववेदि पोराणं' प्राक्तनं च कर्म क्षपयति निर्जरति ॥११९८॥ एदाओ अट्ठपवयणमादाओ णाणदंसणचरिनं । रक्खंति सदा मुणिणो मादा पुत्तं व पयदाओ ॥११९९।। 'एदाओ अठ्ठपवयणमादागो' एता अष्टप्रवचनमातृकाः 'पयदाओ' प्रयताः । 'गाणदंसणचरित्तं रक्वंति' समीचोनज्ञानदर्शनचारित्राणि पालयन्ति सदा मुनेः । 'मादा पुत्तं व जधा' जननी पुत्रं यथा । प्रयता माता पुत्रं पालयत्यपायस्थानेभ्यः ॥११९९॥ . वतभावनानिरूपणायोत्तरप्रबन्धः । त्रयोदशा.वधं चारित्रं अखण्डमाराधयतश्चारित्राराधना। तत्र व्रतानां स्थैर्य सम्पादयित् भावना एकैकस्य पञ्च पञ्चाभिहितास्तत्रेमा अहिंसावतभावना इति बोधयति । एषणासमितिनिरूप्यते-- एसणणिक्खेवादाणिरियासमिदी तहा मणोगुत्ती । आलोयभोयणं वि य अहिंसाए भावणा होति ॥१२००।। 'एसणणिक्खेवादाणिरियासमिदी' एसणसमिदी एषणासमितिरादाननिक्षेपणासमितिः, ईर्यासमितिस्तथा मनोगुप्तिः । 'आलोयभोजणं च' आलोकभोजनं च । 'अहिंसाए' अहिंसावतस्य । 'भावणा' भावनाः । 'होति' भवन्ति । भिक्षाकालः, बुभुक्षाकालोऽवग्रहकालश्चेति कालत्रयं ज्ञातव्यं । ग्रामनगरादिषु इयता कालेन आहार गा०-टी०-यतः समितियोंका पालक पापसे लिप्त नहीं होता किन्तु उससे छूटता है और समितिका पालन न करनेवाला महान् कर्मसमूहसे बँधता है अतः जब तुम गमन करना या बोलना चाहो तो समितिमें तत्पर रहो। ऐसा निर्यापकाचार्य क्षपकसे कहते हैं। क्योंकि ईर्या आदिमें सम्यक् प्रवृत्ति करनेवाला नवीन-नवीन कर्मो का बन्ध नहीं करता और पूर्वमें बाँधे कर्मो की निर्जरा करता है ॥११९८।। गा०-जैसे सावधान माता पुत्रकी अनिष्टोंसे रक्षा करके उसका पालन करती है। वैसे करूपसे पालित ये आठ प्रवचन मातायें मुनिके सम्यग्ज्ञान सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र की रक्षा करती हैं ॥११९९॥ आगे व्रतोंकी भावनाओंका कथन करते हैं । जो तेरह प्रकारके चारित्रकी निर्दोष आराधना करता है उसके चारित्राराधना होती है। उनमेंसे व्रतोंको स्थिर करनेके लिए एक-एक व्रतकी पांच-पाँच भावना कही हैं। उनमेंसे अहिंसाव्रतकी भावना कहते हैं ___ गा०-टी-एषणा समिति, आदान निक्षेपण समिति, ईयासमिति, मनोगुप्ति और आलोक भोजन ये पाँच अहिंसाव्रतकी भावना हैं। उनमेंसे एषणा समिति कहते हैं-भिक्षाकाल, बुभुक्षाकाल और अवग्रहकाल ये तीन काल जानना चाहिए । अमुक मासोंमें ग्राम नगर आदिमें अमुक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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