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________________ भगवती आराधना तारिसओ णत्थि अरी णरस्स अण्णोत्ति उच्चदे णारी | पुरिसं सदा पमत्तं कुदित्ति य उच्चदे पमदा ॥ ९७२ ॥ 'तारिसओ' तादृगन्यो नरस्य नारिरस्तीति नारीत्युच्यते । पुरुषं सदा प्रमत्तं करोतीति प्रमदेति निरुच्यते ॥ ९७२ ॥ ५३८ 'गलए लायदि पुरिसस्स अणत्थं जेण तेण विलया सा | जोदि रं दुक्खेण तेण जुवदी य जोसा य ॥९७३॥ अवलति होदिजं से ण दढं हिदयम्मि घिदिवलं अस्थि । कुम्मरणोपायं जं जणयदि तो उच्चदि हि कुमारी ॥ ९७४ ॥ आलं जणेदि पुरिसस्स महल्लं जेण तेण महिला सा । एयं महिलाणामाणि होंति असुभाणि सव्वाणि ॥ ९७५ ॥ froओ कलीए अलियम्स आलओ अविणयस्स आवासो । आयसस्सावसघो महिला मूलं च कलहस्स || ९७६॥ 'जिलओ कलीए' कलेनिलयः । व्यलीकस्यालयः । अविनयस्याकरः । आयासस्यावकाशः । कलहस्य च मूलं युवतिः ॥ ९७६ ॥ सोगस्स सरी वेरस्स खणी णिवहो वि होइ कोहस्स । णिचओ णियडीणं आसवो महिला अकित्तीए ॥ ९७७ ॥ 'सोगस्स सरी' ' शोकनिम्नगाथा नदी । वैरस्य खनिः । निवहः कोपस्य । निचयो निकृतीनां । अकीर्ते राश्रयो युवतिः ॥९७७॥ गा० - मनुष्यका ऐसा 'अरि' शत्रु दूसरा नहीं है इसलिए उसे नारी कहते हैं । पुरुषको सदा प्रमत्त करती है इसलिये उसे प्रमदा कहते हैं ||९७२ ॥ गा० – पुरुषके गलेमें अनर्थ लाती है । अथवा पुरुषको देखकर विलीन होती है इसलिए विलया कहते हैं । पुरुषको दुःखसे योजित करती है इससे युवती और योषा कहते हैं ||९७३ ॥ गा०—उसके हृदयमें धैर्यरूपी बल नहीं होता अतः वह अबला कही जाती है । कुमरणका उपाय उत्पन्न करनेसे कुमारी कहते हैं || ९७४॥ गा० - पुरुष पर आल - दोषारोप करती है इसलिए महिला कहते हैं । इस प्रकार स्त्रियोंके सब नाम अशुभ होते हैं ।। ९७५ ॥ T गा० - स्त्री रागद्व ेषका घर है । असत्यका आश्रय है । अविनयका आवास है, कष्टका निकेतन है और कलहका मूल है ||९७६ || गा० - शोकको नदी है । वैरकी खान है । क्रोधका पुंज है । मायाचारका ढेर है । अपयशका आश्रय है || ९७७॥ १-२-३. एतद् गाथात्रयं टीकाकारो नेच्छति । Jain Education International ४. शोकस्य नदी, वैरस्यावनिः- आ० मु० । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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