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________________ ५२८ भगवती आराधना 'एदे सवे' एते सर्वे दोषा न भवन्ति ब्रह्मचारिणः पुंसः । तद्विपरीताश्च गुणा भवन्ति बहवो विरागस्य ॥९३०॥ कामग्गिणा धगधगतेण य उज्झंतयं जगं सव्वं । पिच्छइ पिच्छयभूदो सीदीभूदो विगदरागो ॥९३१॥ 'कामग्गिणा' कामाग्निना । धगधगायमानेन दह्यमानेन । दह्यमानं जगत्सवं प्रेक्षते प्रेक्षकभूतः स्वयं विरतीभूतः । कः ? वीतरागः ॥९३१॥ इत्थिकथा इत्येतद्व्याख्यानायोत्तरः प्रबन्धः । कामकदा महिला कुलं सवासं पदि सुदं मादरं च पिदरं च । विसयंधा अगणंती दुक्खसमुद्दम्मि पाडेइ ॥९३२।। महिला दुःखसमुद्रे पातयति विषयांचा अगणयन्ती। किं ? कुलं सहवासिनः पति, सुतं, मातरं च पितरं च ॥९३२॥ माणुण्णयस्स पुरिसदुमस्स णीचो वि आरुहदि सीसं । महिलाणिस्सेणीए णिस्सेणीए व्व दीहदुमं ॥९३३॥ 'माणुग्णयस्स' मानोन्नतस्य पुरुषद्रुमस्य शिर आरोहति नीचपुरुषोऽपि महिलानिःश्रेयिण्या निश्रेण्या दीर्घमिव द्रुमं ॥९३३।। पव्वदमित्ता माणा पुंसाणं होंदि कुलबलधणेहिं । बलिएहिं वि अक्खोहा गिरीव लोगप्पयासा य ॥९३४॥ ‘पव्वदमित्ता माणा' भवन्ति मानानि पुरुषाणां कुलबलधनैः । बलिभिः अक्षोभ्याणि गिरिवल्लोके प्रकाशभूतानि च ॥९३४।। विशेषार्थ-कडारपिंगकी कथा सोमदेवके उपासकाध्ययनमें आई है। गा०-ब्रह्मचारी पुरुषके ये सब दोष नहीं होते। प्रत्युत विरागीके इन दोषोंसे विपरीत बहुतसे गुण होते हैं ।।९३०॥ गा-विरागी मुक्तात्माकी तरह प्रज्वलित कामाग्निसे जलते हुए सब जगत्को एक प्रेक्षकके रूपमें देखता है । अर्थात् वह केवल द्रष्टा ही रहता है उसके कष्टसे स्वयं पीड़ित नहीं होता ॥९ आगे 'इत्थी कथा'-स्त्री कथाका व्याख्यान करते हैं. गा०-विषयसे अन्धी हुई स्त्री किसीकी परवाह न करके अपने कुलको, साथमें रहने वाले पति, पुत्र, माता और पिताको दुःखके समुद्र में गिरा देती है ।।९३२।। गा०-जैसे नसैनीके द्वारा छोटा आदमी भी ऊँचे वृक्ष पर चढ़ जाता है वैसे ही महिला रूपी नसैनीके द्वारा नीच पुरुष भी मानसे उन्नत पुरुष रूपी वृक्षके सिर पर चढ़ जाता है अर्थात् स्त्रीके कारण नीच पुरुषके द्वारा गर्वोन्नत मनुष्यका भी सिर नीचा हो जाता है ।।९३३।। गा०-कुल बल और धनसे पुरुषोंका अहंकार सुमेरुपर्वतके समान जगत्में विख्यात है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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