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पृ०
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१६४
१६७
१३१
भगवती आराधना विषय
विषय अन्तिम समयमें स्त्री भी औत्सर्गिक लिंग प्रत्याख्यानका कथन
१५८ धारण करे
११५ गृहस्थोंके विरतिरूप परिणामोंके भेद १६० लिंग (वेष) धारण करनेके गुण ११६ कायोत्सर्गका निरूपण
१६१ अचेलता (वस्त्रत्याग) के गुण ११९ कायोत्सर्गके चार भेद
१६२ अचेलताका माहात्म्य १२१ कायोत्सर्गके दोष
१६३ अपवादलिंगके धारीकी शुद्धिका क्रम १२१
उपचार विनयका निरूपण केशलोच न करने में दोष १२२ प्रत्यक्षकायिक विनय
१६५ केशलोचके गुण
१२३
वाचिक विनय शरीरसे ममत्वका त्याग
१२६ मानसिक विनय
१६८ स्नान तेलमर्दन, दन्तमंजन आदिका त्याग १२७
गुरुके सिवाय आर्यिका और गृहस्थोंकी भी पीछीसे प्रतिलेखनाका प्रयोजन
१६९ १२९
विनय करना चाहिये पीछीके गुण
१३० विनयके अभावमें दोष
१७७ रातदिन जिनक्वन पढना चाहिये
विनय मोक्षका द्वार
१७० जिनवचन पढ़नेके लाभ १३२ विनयके अन्य गुण
१७१ आत्महितका परिज्ञान
१११ समाधिके कथनमें समाहित चित्तका आत्महितका ज्ञान न होनेके दोष
१३५ स्वरूप
१७३ आत्महितके ज्ञानका उपयोग
१३५ मनकी चंचलता
१७४ स्वाध्यायके लाभ
मनको रोकना दुष्कर
१७६ जिन वचनकी शिक्षा तप है
१३६
जो मनको रोकता है उसीके समता १७७ स्वाध्यायके समान तप नहीं
१४०
पृच्छना और अनुप्रेक्षा स्वाध्याय कैसे हैं ? १७८ क्योंकि स्वाध्यायकी भावनासे सब गुप्तियाँ
मनको विचारोंसे रोकना श्रामण्य है १७९ भावित होती हैं
विचारका अर्थ है हिंसादिरूप परिणति , ज्ञान सम्पादनके लिये विनय करना चाहिये १४२ अनियत स्थानमें निवासके गुण १८१ ज्ञान विनयके भेद
१४३ तीर्थकरोंके कल्याणकोंके स्थानोंके देखनेसे दर्शन विनय १४६ दर्शन विशुद्धि
१८२ चारित्र विनय
अनियतवाससे परीषह सहनेका अभ्यास १९१ इद्रिय प्रणिधान, कषाय प्रणिधानं गुप्ति
, ज्ञानी आचार्योंका लाभ । १९२ और समितियोंका स्वरूप १४८ , सामाचारीमें कुशलता । १९३ बाह्य तपोका निरूपण १५१ अनियत विहारीका स्वरूप
१९६ छह आवश्यकोंका निरूपण
१५३ अनियत विहारके पश्चात् विचार कि मैं सामायिकके भेदोंका कथन
अपना कल्याण कैसे करूँ?
१९७ वन्दनाका कथन १५४ अथालन्दविधिका स्वरूप
१९७ प्रतिक्रमणका कथन १५५ अथालन्द संयमीका आचार
१९८ सामायिक और प्रतिक्रमणमें अन्तर १५६ गच्छ प्रतिबद्ध आलन्दककी विधि २०१
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