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विषय-सूची विषय
विषय इन सतरह मरणोंमेंसे यहाँ पाँच
अर्हन्त सिद्ध, चैत्य, श्रुत, धर्म, साधु मरणोंका ही कथन करनेकी प्रतिज्ञा ६० और प्रवचनका अवर्णवाद । क्षीणकषाय और अयोग केवलीका
दर्शनका आराधक अल्पसंसारी पण्डित पण्डितमरण
६१ , सम्यक्त्वकी आराधना जघन्य मध्यम अन्य व्याख्याकारोंकी समीक्षा
और उत्कृष्ट पण्डितमरणके तीन भेद-पादोगमन,
उत्कृष्ट केवली, जघन्य अविरत सम्यग्दृष्टी ९५ भक्तप्रतिज्ञा, इंगिनी
सराग सम्यक्त्व वीतरागसम्यक्त्व पादोपगमनमरण आदिकी व्युत्पत्ति
प्रशस्तराग अप्रशस्तराग अविरत सम्यग्दृष्टोका बालमरण
जघन्य सम्यक्त्व आराधनाका माहात्म्य मिथ्यादृष्टिका बाल-बालमरण
६५ मिथ्यादृष्टि किसीका भी आराधक नहीं दर्शन आराधनाका कथन
मिथ्यादर्शनका स्वरूप और भेद ९८ सम्यग्दर्शनके भेदोंका स्वरूप
मिथ्यात्वसे दूषित अहिंसादि गुण भी निष्फल ९९ सम्यग्दृष्टी गुरुनियोगसे असत्का भी
मिथ्यात्वीका चारित्र और तप भी व्यर्थ १०१ श्रद्धान करता है अभव्यके अनन्तभव
१०२ सूत्रसे दिखलानेपर भी यदि वह असत्
प्रथम भक्तप्रत्याख्यानमरणका कथन १०३ श्रद्धान नहीं छोड़ता तो मिथ्यादृष्टि है ६९ भक्तप्रत्याख्यानके दो भेद
१०४ किसके रचित सूत्र प्रमाण है ?
६९ यहाँ सविचार भक्तप्रत्याख्यानका कथन प्रत्येक बुद्ध-अभिन्न दसपूर्वीका स्वरूप ७० चालीस सूत्रों द्वारा
१०४ सूत्रोंका अविपरीत अर्थ कौन कर
चार गाथाओंसे चालीस सूत्र कहते हैं। १०५ सकता है ?
७१
असाध्यव्याधिमें या संयमको घातक जो षद्रव्योंका और तत्वोंका श्रद्धानी
वृद्धावस्थामें या उपसर्गमें १०८ है वह सम्यग्दृष्टी है
७२ चारित्रके नाशक शत्रओंके होनेपर या जो सूत्रनिर्दिष्ट एक भी अक्षरका
दुभिक्षमें या घोर जंगलमें फँस जानेपर ११० ___ श्रद्धान नहीं करता है वह मिथ्यादृष्टि ७६ चक्षु और श्रोत्रके दुर्बल हो जानेपर १११ मिथ्यादृष्टीका स्वरूप
ওও परोंमें चलनेकी शक्ति न होनेपर भक्तमिथ्यात्वका फल अनन्तमरण
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प्रत्याख्यान करना योग्य है। उक्त अतः निर्ग्रन्थ प्रवचनकी श्रद्धा ही कार्यकारी ७८
भयोंके न होनेपर भी जो मुनि मरना सम्यक्त्वके अतिचार
७९
चाहता है वह मुनिधर्मसे विरक्त है ११२ सम्यग्दर्शनके चार गुण दर्शन विनय
भक्तप्रत्याख्यानका इच्छुक निग्रन्थ लिंगअरहन्त, सिद्ध, चैत्य आदिका स्वरूप
धारण करता है।
११३ भक्तिपूजा तथा वर्णजनन
८७ जिसके पुरुषचिन्हमें दोष हो वह भी उस सिद्ध, चैत्य, श्रुत, तथा धर्मका माहात्म्य ८८ समय निग्रन्थ लिंगधारण करे ११४ साधु, आचार्य, आदिका माहात्म्य ९० औत्सर्गिक लिंग (वेष) का स्वरूप ११४
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