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________________ भगवती आराधना मादाए वि वेसो पुरिसो अलिएण होइ एक्केण । किं पुण अवसेसाणं ण होइ अलिएण सत्त व्च ।।८४०।। 'मादाए वि य' मातुरप्यविश्वास्यो भवत्यलीकेन एकेन पुरुषः । शेपाणां पुनर्न किं भवेदलीकेन शत्रुरिव ॥८४०॥ अलियं स कि पि भणियं घादं कुणदि बहुगाण सच्चाणं । अदिसंकिदो य सयमवि होदि अलियभासणो पुरिसो ॥८४१।। 'अलियं स किपि भणियं' सकृदप्युक्तं अलोकं सत्यानि बहूनि नाशयति । अलीकवादी पुरुषः स्वयमपि शङ्कितो भवति नितरां ॥८४१।। अप्पच्चओ अकित्ती भंभारदिकलहवेरभयसोगा। वधबंधभेय' धणणासा वि य मोसम्मि सण्णिहिदा ॥८४२।। _ 'अपच्चओ' अप्रत्ययः । अकीतिः, संक्लेशः, अरतिः, कलहो, वैरं, भयं, शोकः, वधो, बन्धः, स्वजनभेदः, धननाशश्चेत्यमी दोषाः सन्निहिता मृषावचने ।।८४२॥ . पापस्सासवदारं असच्चवयणं भणंति हु जिणिंदा । हिदएण अपावो वि हु मोसेण गदो वसू णिरयं ।।८४३॥ 'पावस्सागमदारं' पापस्यागमद्वारमिति वदन्त्यसत्यं जिनेन्द्राः । हृदये अपापोऽपि मृषामात्रेण वतुर्गतो नरक इत्याख्यानकं वाच्यं ।।८४३॥ परलोगम्मि वि दोसा ते चेव हवंति अलियवादिस्स । मोसादीए दोसे जण वि परिहरंतस्स ।।८४४।। गा०-एक असत्य वचनसे मनुष्य माताका भी विश्वास-भाजन नहीं रहता। तव असत्य बोलनेसे शेषजनोंको वह शत्रुके समान क्यों नहीं प्रतीत होगा ।।८४०॥ गा०-एक बार भी बोला गया झूठ बहुत बार बोले गये सत्यवचनोंका घात कर देता है। लोग उसके सत्यकथनको भी झूठ मानने लगते हैं। झूठ बोलनेवाला मनुष्य स्वयं भी अतिभीत रहता है ।।८४१।। गा०-असत्य भाषणमें अविश्वास, अपयश, संक्लेश, अरति, कलह, वैर, भय, शोक, वध, बन्ध, कुटुम्बमें फूट, धनका नाश इत्यादि दोष पाये जाते हैं ।।८४२।। गा०—जिनेन्द्रदेव असत्यको पापास्रवका द्वार कहते हैं, उससे पापका आगमन होता है । राजा वसु हृदयसे पापी नहीं था फिर भी झूठ बोलनेसे नरकमें गया। इसकी कथा कथाकोशमें है ॥८४३।। १. यणणासा-आ० ।-भेदणाणा सब्वे मो-मु० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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