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________________ विजयोदया टीका ५०१ अहवा जं उब्भावेदि असंतं खेतकालभावहिं । अविचारिय अस्थि इह घडोत्ति जह एवमादीयं ।।८२१।। अथवा 'जं उम्भावेदि' यद्वचनं उद्भावयति । असन्तं घटं। कथमसन्तं ? खेत्तकालभावेहि क्षेत्रान्तरसम्बन्धित्वेन (अ) सन्तं इहत्यं घटं कालान्तरसम्बन्धन अतीते अनागते वा असन्भावान्तरसम्बन्धित्वेन कृष्णत्वादिनाऽसन्तं । 'अविचारिय' अविचार्य इत्थं सत् इत्थमसत इति अस्ति धट इत्येवमादिकं सर्वथास्तित्वमसद्भावयतीति असद्वचनं ।।८२१॥ तदियं असंतवयणं संतं जं कुणदि अण्णजादीगं । अविचारित्ता गोणं अस्सोत्ति जहेवमादीयं ॥८२२॥ 'तदीयं असंतवयणं' तृतीयमसद्वचनं । 'संतं जं कुणदि अण्णजादीगं' सद्यत्करोति अन्यजातीयं । 'अविचारित्ता गोणं अस्सोत्ति जहेवमादीगा'। अश्वमित्येवमादिकं । सतो बलीवईत्वात अश्वत्वं असत्तस्य वचनं ॥८२२॥ चतुर्थमसदचनमाचष्टे जं वा गरहिदवयणं जं वा सावज्जमंजुदं वयणं । जं वा अप्पियवयणं असलवयणं चउत्थं च ।।८२३॥ 'जं वा गरहिदवयणं' यद्वा गहितं वचनं । 'जं वा सावज्जसंजुदं वयणं' यद्वा सावद्यसंयुतं वचनं । 'जं वा अप्पियवयणं' यद्वा अप्रियवचनं । 'तत् चउत्थं चतुर्थ असंतवयणं असद्वचनं ॥८२३॥ तेषु वचनेषु गर्हितवचनं व्याचष्टे गा०--अथवा जो वचन क्षेत्र काल भावकी अपेक्षा असत् घटका विचार न करके 'घट है' ऐसा कहता है वह असत्यवचन है ।।८२१।। विशेषार्थ-यह पहले कहा है कि कोई वस्तु न सर्वथा सत् है और न सर्वथा असत् है । जो स्वद्रव्य क्षेत्र काल भावकी अपेक्षा सत् है वही पर द्रव्य क्षेत्र काल भावकी अपेक्षा असत् है। जैसे जो घट इस क्षेत्रकी अपेक्षा सत् है वही अन्य क्षेत्रकी अपेक्षा असत् है। जो इस कालकी अपेक्षा सत् है वही अतीत और अनागतकालकी अपेक्षा असत् है, जो स्वभावकी अपेक्षा सत् है वही भावान्तरकी अपेक्षा असत् है। अतः घट इस रूपसे सत् है और इस रूपसे असत् है ऐसा विचार न करके 'घट है' इस तरह घटको सर्वथा सत् कहना असत्का उद्भावन होनेसे असत्य वचन है ।।८२१।। गा०-एक जातिकी वस्तुको जन्य जातिकी कहना तीसरा असत्य वचन है। जैसे विना विचारे बैलको घोड़ा कहना ॥८२२।। . चतुर्थ असत्य वचनको कहते हैं गा०-जो गहित वचन है, सावद्ययुक्त वचन है, अप्रिय वचन है वह चतुर्थ असत्य वचन है ॥८२३॥ ___ उनमेंसे गहित वचनको कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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