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________________ भगवती आराधना ૪૮ आदित्यः । ' गाणं जगमसेसं' ज्ञानं जगदशेषं । 'दीवेदि ́ प्रकाशयति । समस्तवस्तुव्यापिज्ञानवदन्यः प्रकाशो नास्तीत्यर्थः ॥ ७६७॥ ाणं पयासओ सोधओ तवो संजमो य गुत्तियरो | तिरपि समाओगे मोक्खो जिणसासणे दिट्ठो ||७६८ || 'गाणं पगासगं' ज्ञानं प्रकाशयति 'संसारं ' संसारकारणं, 'मुक्ति' मुक्तिकारणं च ॥ 'सोघवो तवो' .नर्जरानिमित्तं तपः । ' संजमो य गुत्तियरो' संयमश्च गुप्तिकरः । 'तिरहंपिं त्रयाणामपि । 'समाओगे' संयोगे । 'मोक्खो' मोक्ष: । 'जिणसासणे दिट्ठो' जिनशासने दृष्टः ||७६८॥ ाणं करणविहूणं लिंगग्गहणं च दंसणविहूणं । संजमहीण य तवो जो कुणदि णिरत्थयं कुणदि || ७६९ || विणा जो इच्छदि मोक्खमग्गमुवगंतुं । णाज्जो गंतुं कडिल्लमिच्छदि अंघलओ अंधयारम्मि ||७७०|| 'णाणुज्जोएण विणा' ज्ञानोद्योतेन विना । 'जो इच्छदि' यो वांछति । 'मोक्खमग्गमुवगंतुं' चारित्रं तपश्च इह मोक्षमार्ग इत्युच्यते चारित्रं तपश्चोपगन्तुं । 'गंतुं कडिल्लमिच्छदि' गन्तुं दुर्गमिच्छति । कः ? 'अंधलओ' अन्धः । 'अंधयारम्मि' अन्धकारे तमसि । यथा वृक्षतृणगुल्मादिनिचिते प्रदेशे गमनं अतिदुष्करं अप्रकाशे सति । तद्वद्धिसादिपरिहारो जीवनिकायाकुले दुष्कर इति मन्यते ॥ ७७० ॥ जइदा खंडसिलोगेण जमो मरणादु फेडिदो राया । पत्तो य सामण्णं किं पुण जिणउत्तसुतेण ॥ ७७१ ॥ 'जइदा खण्डसिलोगेण' यदि तावत्खण्डेन श्लोकस्य । 'जमो राया मरणादो फेडिदो' यमो राजा मरणापतन नहीं होता । सूर्य तो अल्पक्षेत्रको ही प्रकाशित करता है किन्तु ज्ञान समस्त जगत्को प्रकाशित करता है । आशय यह है समस्त वस्तुओंमें व्याप्त ज्ञानके समान अन्य प्रकाश नहीं है ॥ ७६७॥ गा० - ज्ञान संसार संसारके कारण, मोक्ष और मोक्षके कारणोंको प्रकाशित करता है । निर्जराका कारण है । संयम गुप्तिकारक है । इन तीनोंके मिलनेपर जिनागममें मोक्ष कहा है ||७६८|| गा० - आचरणहीन ज्ञान, श्रद्धानके विना मुनि दीक्षाका ग्रहण और संयम के विना तप जो करता है वह सब निरर्थक करता है ||७६९ || Jain Education International गा०—ज्ञानरूप प्रकाशके विना मोक्षमार्गको जो प्राप्त करना चाहता है, यहाँ चारित्र और तपको मोक्षमार्ग कहा है अतः जो ज्ञानके विना चारित्र और तपको प्राप्त करना चाहता है वह अन्धा अन्धकारमें दुर्गपर जाना चाहता है । जैसे प्रकाशके अभावमें वृक्ष, तृण, झाड़ी आदि से भरे प्रदेश में जाना अति कठिन है वैसे ही जीवोंसे भरे प्रदेशमें हिंसा आदिका बचाव कठिन है ||७७०॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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