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विजयोदया टीका
४३९ ‘चत्तारि जणा धम्मं कहंति विकथाओ वज्जित्ता' इति पदसम्बन्धः चत्वारो धर्म कथयन्ति विकथाः परित्यज्य । कास्ता विकथा भवन्ति
भत्तित्थिरायजणवदकंदप्पत्थणडणट्टियकहाओ ।
वज्जित्ता विकहाओ अज्झप्पविराधणकरीओ ॥६५०॥ 'भत्तित्थिराय जणवदकंदप्पत्थणडणटिगकहाओ' भत्तं भज्यते सेव्यते इति भक्तं चतुर्विधाहारः । भक्तस्य, स्त्रीणां, राज्ञां, जनपदानां रागोद्रेकात्प्रहाससम्मिश्राशिष्टवाक्प्रयोगः कन्दर्पः तस्य अर्थस्य, नटानां, नतिकानां च याः कथास्ताः । 'अज्झप्पविराघणकरीओ' आत्मानमधिवर्तते इत्याध्यात्मिकं । आत्मनस्तत्त्वनिश्चयनिरूपणं ध्यानं (?) तस्य 'विराधणकरीओ' विराधनाकारिणीः ॥६५०॥ कथं तहि कथयन्ति- .
अखलिदममिडिदमव्वाइट्ठमणुच्चमविलंबिदममंदं ।
कंतममिच्छामेलिदमणत्थहीणं अपुणरुत्तं ॥६५१॥ _ 'अखलिदं' अस्खलितं अन्यथा शब्दोच्चारणं शब्दस्खलना, विपरीतार्थनिरूपणा अर्थस्खलना । 'अमिडिदं' अनादंडितं । असंमुग्धं । 'अव्वाइटठं' अव्याहतं अप्रतिहतं प्रत्यक्षादिना । 'अणुच्चं' नातिमहद्ध्वनिसमेतं । 'अविलंबितं' नातिशनैः । 'अमंद' नात्यल्पघोष । 'कंत' श्रोत्रमनोहरं । 'अमिच्छामेलिदं' मिथ्यात्वेनानुन्मिश्रं । 'अणत्यहीणं' अभिधेयशून्यं यन्न. भवतिः । 'अपुणरुत्तं' उक्तस्य अविशेषेण भूयोऽभिधानं पुनरुक्तं यथा तत्पौनरुक्तं न भवति ॥६५१॥ .. .णिद्धं मधुरं हिदयंगमं च पल्हादणिज्ज पत्थं च ।
चत्तारि जणा धम्मं कहंति णिच्चं विचित्तकहा ॥६५२।। चार परिचारक मुनि विकथा त्यागकर धर्मकथा कहते हैं ऐसा आगे कहेंगे । यहाँ विकथाओंको कहते हैं
गा०-जो भोगा या सेवन किया जाता है वह भक्त है अर्थात् चार प्रकारका आहार । 'आहारकी कथा, स्त्रीकी कथा, राजाकी कथा, देशोंकी कथा । रागके उद्रेकसे हँसीसे मिश्रित अशिष्ट वचन बोलना कन्दर्प है। उसकी कथा, नटोंकी और नाचनेवालियोंकी कथा विकथा हैं । ये अध्यात्मको विराधना करती हैं। जो आत्मासे सम्बद्ध हो उसे आध्यात्मिक कहते हैं। आत्मतत्त्वके यथार्थ कथनको अध्यात्म कहते हैं । ये कथाएँ उसका विघात करती हैं ॥६५०।।
गा०-टी०-वे मुनि अस्खलित धर्मकथा कहते हैं। कुछका कुछ शब्द बोलना शब्दस्खलन है । विपरीत अर्थ करना अर्थस्खलन है। इस स्खलनसे रहित कथा कहते हैं । एक बातको दुहराते नहीं। सन्देहमें डालनेवाला कथन नहीं करते। प्रत्यक्ष आदिसे अविरुद्ध कथन करते हैं। बहुत जोरसे नहीं बोलते । न बहुत रुक-रुककर बोलते हैं। बहुत मन्द आवाजसे भो नहीं बोलते । कानोंको प्रिय वचन बोलते हैं। मिथ्यात्वकी बात नहीं करते। ऐसी बात नहीं कहते जिसका कुछ अर्थ ही न हो। जो बात कही हो उसे ही पुनः कहना पुनरक्त है। वे पुनरुक्त कथन नहीं करते ॥६५१॥
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