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________________ ४३८ भगवती आराधना समाघिकरणुज्जुदा सुदरहस्सा | कप्पाकप्पे कुसला " गीदत्था भयवंतो अडदालीसं तु णिज्जवया || ६४७ || 'कप्पाकप्पे कुसला' योग्यमिदमयोग्यमिति भक्तपानपरीक्षायां कुशलाः । 'समाधिकरणुज्जुदा' क्षपकचित्तसमाधानकरणोद्यताः । ' सुदरहस्सा' श्रुतप्रायश्चित्तग्रन्थाः | 'गोदत्था' गृहीतसूत्रार्थाः । भगवन्ते भगवन्तः स्वपरोद्धरणमाहात्म्यवन्तः । 'अडदालीसं तु' अष्टचत्वारिंशत्संख्या | 'णिज्जवगा' निर्यापका यतयः || ६४७ || निर्यापका इमं इममुपकारं कुर्वन्तीति कथनायोत्तरप्रबन्धः आमासणपरिमासणचंकमणसयण- णिसीदणे ठाणे । उव्वत्तणपरियत्तणपसारणा - उंटणादीसु ||६४८|| 'आमासनपरिमाणचंकमणसयणणिसीयणे ठाणे' क्षपकस्य शरीरैकदेशस्य स्पर्शनं आमर्शनं, समस्तशरीरस्य हस्तेन स्पर्शनं परिमर्शनं । चंकमणमितस्तो गमनं शयनं । 'णिसोदणे ठाणे' निषद्यास्थानमित्येतेषु । 'उठवत्तणपरियत्तणपसारणाउंटणादीसु' उद्वर्त्तने पाश्र्वात्पाश्र्वान्तरसंचरणे । हस्तपादादिप्रसारणे आकुञ्चनमित्यादिषु च ॥ ६४८॥ संजदकमेण खवयस्स देहकिरियासु णिच्चमाउत्ता | चदुरो समाधिकामा अलग्गंता पडिचरंति || ६४९॥ 'संजदकमेण' प्रयत्नेनैव । 'खवगस्स' क्षपकस्य । 'देहकिरियासु' शरीरक्रियासु व्यावर्णितासु । 'णिन्वं' प्रतिदिनं । 'आजुत्ता' आयुक्ताः । 'चटुरो' चत्वारो यतयः । समाधिकामाः क्षपकस्य समाधिकरणमभिलपन्तः । 'ओलग्गंता' उपासनां कुर्वन्तः । 'पडिचरन्ति' प्रतिचारका भवन्ति ॥ ६४९॥ को गुरु क्षपककी परिचर्या में नियुक्त नहीं करते । किन्तु जो विश्वस्त होते हैं उन्हें ही नियुक्त करते हैं ॥६४६॥ गा० - जो यह योग्य है और यह अयोग्य है इस प्रकार भोजन और पानकी परीक्षामें कुशल होते हैं, क्षपकके चित्तका समाधान करनेमें तत्पर रहते हैं, जिन्होंने प्रायश्चित्त ग्रन्थोंको सुना है, जो सूत्रके अर्थको हृदयसे स्वीकार किये हैं, अपने और दूसरोंके उद्धार करनेके माहात्म्यसे शोभित हैं । ऐसे अड़तालीस निर्यापक यति होते हैं ॥ ६४७॥ निर्यापक क्या-क्या करते हैं, यह कहते हैं— गा० - क्षपकके शरीरके एकदेशके स्पर्शन करनेको आमशन कहते हैं । और समस्त शरीरका हस्तसे स्पर्शन करनेको परिमर्शन कहते हैं। इधर-उधर जानेको चंक्रमण कहते हैं । अर्थात् परिचारक मुनि क्षपकके शरीरको अपने हाथसे सहलाते हैं, दवाते हैं । चलने फिरनेमें सहायता करते हैं। सोने, बैठने, उठने में सहायता करते हैं । उद्वर्तन अर्थात् एक करवटसे दूसरी करवट लिवाते हैं । हाथ पैर फैलाने में संकोचनेमें सहायता करते है ||६४८ || गा० - चार परिचारक यति मुनिमार्ग के अनुसार क्षपककी ऊपर कही शारीरिक क्रियाओं में प्रतिदिन लगे रहते हैं । वे क्षपककी समाधिकी कामना करते हुए उपासनापूर्वक परिचर्या करते हैं ||६४९|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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