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________________ विजयोदया टीका ४१९ च्यते । पीठिकादिष्वनेकच्छिद्राकुलासु दुःप्रेक्ष्याः प्राणिनो दृष्टाश्च नापकतुं शक्यन्ते । ततोऽहिंसावतातिचारः । तथा चोक्तम् पीठिकासंदपल्लंके मंचए मालए तथा । अणाचरिदमज्जाणं आसिदु सइदु पि वा ॥ गंभीरवासिणो पाणा दुप्पेक्खा दुविकिंचणा । तम्हा दुप्पडिलेहं च वज्जए पढमव्वए ॥ [ ] अथवा गोचरप्रविष्टस्य गृहेषु निषद्यायां कस्तत्र दोष इति चेत् ब्रह्मचर्यस्य विनाशः स्त्रीभिः सह संवासात् ? असकृत्तदीयकुचतटबिम्बाधरादिसमवलोकनाद् भोजनार्थिनां च विघ्नः । कथमिव यतिसमीपे भुजिक्रियां सम्पादयामः । अशुचि वेदं 'चेत्कथमस्यामासन्यां तु तावदमी इति क्रुध्यन्ति वा गृहस्थाः । किमर्थमयमत्र दाराणां मध्ये निषण्णो यतिर्भुङ्क्ते न यातीति । स्नानमुद्वर्तनं, गात्रप्रक्षालनं च वाकुसमित्युच्यते । स्नानेन उष्णोदकेन शीतजलेन सौवीरकादिना वा बिलस्था धात्रीक्षुद्रविवरस्थाः इतरेऽपि स्वल्पकायाः कुन्थुपिपीलिकादयो वा नश्यन्ति । तथा चोक्तम् सुहमा संति पाणा खु पासेसु अ बिलेसु अ । सिहायंतो यतो भिक्खू विकटेणोपपीडए ॥ ण सिण्हायंति तम्हा ते सीदुसणोदगेण वि । जावजीवं वदं घोरं अण्हाणगमधिट्ठिदं ॥ लेखना कठिन है तथा उनकी शुद्धि अशक्य होती है। पीढ़ेपर, आसनपर, खाट या मंचपर बैठना निषद्या है। अनेक छिद्रवाली पीठिका आदिमें रहनेवाले जन्तुओंको देखना अशक्य होता है और देख भी लिया जाये तो उन्हें दूर करना शक्य नहीं होता। और उससे अहिंसाव्रतमें अतिचार लगता है । कहा भी है पीढ़ा, आसंद, पलका, मंच आदि आसनोंपर स्नान न करनेवाले साधुओंका बैठना या शयन करना उचित नहीं है। गहराईमें रहनेवाले जीवजन्तु देखे नहीं जाते । उनका बचाव कष्ट साध्य होता है । इसलिए अहिंसा नामक प्रथम व्रतमें 'ठीकसे नहीं देखना' छोड़ना चाहिए। अथवा गोचरीके लिए जाकर घरमें प्रवेश करना और वहाँ वैठना निषद्या है। . शङ्का-इसमें क्या दोष है ? समाधान-स्त्रियोंके साथ रहनेसे ब्रह्मचर्यका विनाश होता है। क्योंकि बार-बार उनके कुचों और ओष्ठोंपर दृष्टि जाती है। तथा भोजन करनेके. इच्छुक गृहस्थोंको बाधा होती है । वे सोचते है-हम यतियोंके सामने कैसे भोजन करें ?. अथवा उन्हें क्रोध हो सकता है कि इस अपवित्र पलके पर ये क्यों बैठे हैं ? यह यति यहाँ स्त्रियोंके मध्यमें बैठकर क्यों भोजन करता है, जाता क्यों नहीं है। स्नान, उबटन और शरीर धोनेको वाकुस कहते हैं। गर्मजल, ठंडे जल अथवा सौवीरक आदिसे स्नान करनेसे पृथ्वीके बिलोंमें स्थित प्राणी अथवा अन्य कुन्थु चींटी आदि क्षुद्रजीव मर जाते हैं । कहा है 'बिलोंमें तथा आस-पासमें सूक्ष्मजन्तु रहते हैं। यदि भिक्षु स्नान करे तो वे पीड़ित होते हैं। इसलिए वे भिक्षु ठंडे या गर्मजलसे या कांजीसे स्नान नहीं करते। वे जीवन पर्यन्त घोर अस्नानव्रतको धारण करते हैं।' १. मंचयासालये-अ० मु०। २. वेश्मस्याद्यां अ० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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