SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 485
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१८ भगवती आराधना पुढविदगागणिपवणे य बीयपत्तेयणंतकाए य । विगतिगचदुपंचिंदियसत्तारंभे अणेयविहे ।।६१०॥ 'पुढविदगागणिपवणे य' पृथिव्यामुदकेऽग्नौ पवने च । 'बीजपत्तेयणंतकाए य' बीजे प्रत्येककाये च वनस्पती । “विगतिगचदुपंचेंदियसत्तारंभे' द्वित्रिचतुःपञ्चेन्द्रियसत्त्वविषये चारम्भे । 'अणेगविधै' अनेकप्रकारे । पृथिव्या मृत्तिकोपलशर्करासिकतालवणा'वजमित्यादिकायाः खननं, विलेखनं, दहनं, कुट्टनं, भञ्जनं इत्यादिकयारम्भः । उदककरकावश्यायतुषारादीनां अब्भेदानां पानं, स्नानमवगाहनं, तरणं हस्तेन, पादेन, गात्रेण वा मईनं इत्यादिकं । 'अग्निज्वाला, प्रदीपः उल्मुकं इत्यादिकस्य तेजसः उपर्युदकस्य, पाषाणस्य, मृत्तिकायाः सिकताया वा प्रक्षेपणं, पाषाणकाष्ठादिभिर्हननं इत्यादिकं । झंझामण्डलिकादी वायी वातिव्यंजनेन, तालवन्तेन, शूर्पण, चेलादिना वा समीरणोत्थापनादिकः वाते वाभिगमनं । बीजानां प्रत्येककायानां अनन्तकायानां च वृक्षवल्लीगुल्मलतातृणपुष्पफलादीनां दहनं, छेदनं, मर्दनं, भञ्जन, स्पर्शनं, भक्षणमित्यादिकः । द्वीन्द्रियादीनां मारणं, छेदन, ताडनं, बन्धनं, रोधनमित्यादिकं ॥६१०॥ पिंडोवधिसेज्जाए गिहिमत्तणिसेज्जवाकुसे लिंगे । तेणिक्कराइभत्ते मेहूणपरिग्गहे मोसे ॥६११॥ 'पिंडोवधिसेज्जाए' पिण्डे, उपकरणे, वसतौ च उद्गमोत्पादनैषणादानातिचारः । 'गिहिमत्तणिसेज्जवाकुसे लिंगों' । गृहस्थानां भाजनेषु कुम्भकरकशरावादिषु कस्यचिन्निक्षेपणं, तैर्वा कस्यचिदादानं च चारित्रातिचारः । दुःप्रतिलेख्यत्वाच्छोधयितुमशक्यत्वाच्च । पीठिकायामासन्धां, खट्वायां, मञ्चे वा आसनं निषद्यो गा०-टी०-पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, प्रत्येककायिक वनस्पति, साधारणकायिक वनस्पति, दो इन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय जीवसम्बन्धी अनेक प्रकारके आरम्भ की आलोचना करता है। मिट्टी, पत्थर, शर्करा, रेत, नमक इत्यादिका खोदना, हलसे जोतना, जलाना, कूटना, तोड़ना आदि पृथिवी सम्बन्धी आरम्भ हैं। जल, बर्फ, ओस, तुषार आदि पानीके भेदोंका पीना, स्नान, अवगाहन, तैरना, हाथ पैर या शरीरसे मर्दन करना आदि जलसम्बन्धी आरम्भ है। आग, ज्वाला, दीपक, उल्मुक इत्यादि आगके ऊपर पानी, पत्थर, मिट्टी, अथवा रेत फेंकना या पत्थर लकड़ी आदिसे आगको पीटना आगसम्बन्धी आरम्भ है। झंझा और माण्डलिक आदि वायुको ताड़के पत्रसे, सूपसे, लकड़ी आदिसे रोकना, या पंखे आदिसे हवा करना, वायुके सन्मुख गमन करना ये सब वायुकायसम्बन्धी आरम्भ हैं। बीज, प्रत्येक काय और अनन्तकाय वृक्ष, लता, बेल, झाड़ी, तृण, पुष्पफल आदिको जलाना, छेदना, मसलना, तोड़ना, छूना, खाना आदि वनस्पतिकाय सम्बन्धी आरम्भ हैं। दो इन्द्रिय आदि जीवोंको मारना, छेदना, पीटना, बाँधना, रोकना आदि दो इन्द्रिय आदि सम्बन्धी आरम्भ हैं । ये सब आरम्भ मुझसे हुए हैं ॥६१०॥ गा०-टी०-भोजन, उपकरण और वसतिमें उद्गम, उत्पादन और एषणासम्बन्धी अतिचार होते हैं। गृहस्थोंके पात्र घट, झारी, सकोरा आदिमें किसी वस्तुका निक्षेपण करना अथवा उनके द्वारा किसी वस्तुका ग्रहण चारित्रसम्बन्धी अतिचार हैं क्योंकि उन पात्रोंकी प्रति १. णाभ्रकमि-आ० मु० । लवणववादिकाया मूलारा० । २. अग्नेर्वाला आ० मु० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy