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________________ ३४२ भगवती आराधना क्षेत्रसंसार उच्यते-सीमन्तकादीनि अप्रतिष्ठान्तानि चतुरशीतिनरकशतसहस्राणि । तत्रककस्मिन् नरके अनन्ता जन्ममरणयोवृत्तिरतीते काले । भविष्यति तु भाज्या भव्यान्प्रति । अभव्यानां तु भविष्यत्यप्यनन्ताः। कालसंसार उच्यते-उत्सपिण्याः कस्याश्चित्प्रथमसमये प्रथमनरके उत्पन्नो, मृत्वान्यत्रोत्पन्नः, पुनः कदाचिदुत्सपिण्या द्वितीयादिसमये उत्पन्न एवं तृतीयादिसमयेषु । एवं उत्सपिणी समाप्ति नीता । तथा अवसर्पिण्यां अपि । एवमितरेष्वपि नरकेषु । एवमुत्सपिण्यवसर्पिणीकालयोरनन्तवृत्तिः । भवसंसार उच्यते प्रथमायां पृथिव्यां दशवर्षसहस्रायुर्जातः पुनः समयेनैकैकेन अधिकानि दशवर्षसहस्राणि । एवं द्विसमयाद्यधिकक्रमेण सागरोपमपयंतमायुः समाप्ति नीतम् । द्वितीयायां समयाधिकं सागरोपमादिं कृत्वा द्वितीयादिसमयाधिकक्रमेण यावत्सागरोपमत्रयपरिसमाप्तिः । तृतीयायां समयाधिकं त्रिसागरोपमादिकं कृत्वा द्वितीयादिसमयाधिकक्रमेण यावत्सागरोपमसप्तकपरिसमाप्तिः । चतुर्थ्यां समयाधिकसप्तसागरोपमादारभ्य द्वितीयादिसमयाधिकक्रमेण यावद्दशसागरोपमपरिसमाप्तिः । पञ्चम्यां समयाधिकदशसागरोपमादारभ्य द्वितीयादिसमयाधिकक्रमेण यावत्सप्तदशसागरोपमपरिसमाप्तिः । षष्ठयां समयाधिकसप्तदशसागरोपमादारभ्य द्वितीयादिसमयाधिकक्रमेण यावद्वाविंशतिसागरोपमपरिसमाप्तिः। सप्तम्यां समयाधिकद्वाविंशतिसागरोपमादारभ्य यावत्त्रयस्त्रिशत्सागरोपमपरिसमाप्तिः । एवमेतेष्वायुविकल्पेषु परावृत्तिः भवसंसारः । क्षेत्र संसार कहते हैं-प्रथम नरकके सीमन्तकसे लेकर सातवें नरकके अप्रतिष्ठ विलें पर्यन्त चौरासी लाख विलें हैं। उनमें से एक-एक विलेमें अतीत कालमें अनन्त बार जन्म मरण जीवोंने किया है । भविष्यमें भव्य जीवोंका अनन्त बार जन्म मरण भाज्य है । अभव्य जीवोंका तो भविष्यमें भी अनन्त जन्म मरण होंगे। काल संसार कहते हैं-किसी उत्सर्पिणीके प्रथम समयमें प्रथम नरकमें जीव उत्पन्न हुआ। मरने पर अन्यत्र उत्पन्न हुआ। फिर कभी उत्सर्पिणीके दूसरे आदि समयमें उत्पन्न हुआ। इसी तरह तीसरे आदि समयोंमें उत्पन्न हुआ। इस प्रकार उत्सर्पिणी कालके सब समयोंमें जन्म लेकर उत्सपिणी समाप्त की। इसी प्रकार अवसर्पिणी भी समाप्त की। इस तरह अन्य नरकोंमें उत्पन्न हुआ । इस प्रकार उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी कालमें अनन्त बार जन्मा मरा। भव संसार कहते हैं--प्रथम नरकमें दस हजार वर्षकी आयु लेकर जन्मा और मरा। पुनः एक एक समय अधिक दस हजार वर्षको आयु लेकर जन्मा और मरा। ऐसा करते करते क्रमसे एक सागर प्रमाण आयु पूर्ण को । फिर दूसरे नरकमें एक समय अधिक एक सागरकी आयु लेकर उत्पन्न हुआ मरा । इस तरह एक एक समय बढ़ाते हुए तीन सागर प्रमाण आयु पूर्ण की। तीसरे नरकमें एक समय अधिक तीन सागरकी आयु लेकर उत्पन्न हुआ और एक एक समय बढ़ाते हुए सात सागरकी आयु पूर्ण की। फिर चतुर्थ नरकमें एक समय अधिक सात सागरकी आयु लेकर जन्मा मरा । फिर एक एक समय बढ़ाते बढ़ाते दस सागरकी आयु पूर्ण की। फिर पाँचवें नरकमें एक समय अधिक दस सागरकी आयु लेकर जन्मा मरा। फिर एक एक समय बढ़ाते बढ़ाते सतरह सागरकी आयु पूर्ण की । फिर छठे नरकमें एक समय अधिक सतरह सागरसे लेकर एक एक समय बढ़ाते-बढ़ाते बाईस सागरकी आयु पूर्ण की। फिर सातवेंमें एक समय अधिक बाईस सागरसे लेकर तैंतीस सागरकी आयु पूर्ण की' इस प्रकार इन आयुके विकल्पोंके परावर्तनको भव संसार कहते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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