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________________ भगवती आराधना दोनों प्रकरणोंके प्रकाशित संस्करण में ऐसा उल्लेख नहीं है कि यापनीय शाकटायनने स्त्रीमुक्ति और केवल भुक्ति प्रकरण तथा अमोघवृत्तिके साथ शब्दानुशासनकी रचना की । तथा मलयगिरि दोनों प्रकरणों और उनके कर्ताके सम्बन्धमें मौन है | ३४ इस परसे यह संभावना होती है कि यद्यपि दोनों शाकटायन यापनीय थे। किन्तु एक नहीं थे । यह निष्कर्ष केवल इस बात पर निर्भर है कि दोनों प्रकरणोंकी हस्तलिखित मूल प्रति पर 'यापनीयप्रकरण युग्मम्' वाक्य पाया जाता है । किन्तु यदि उस पर यह वाक्य नहीं है जैसा कि मुझे (प्रो० विरवे) सन्देह है क्योंकि संस्कृत ग्रन्थोंके आधुनिक संस्करणोंके मुख पृष्ठोंका मुझे इससे स्मरण हो आता है, तो शाकटायनके यापनीय तथा दोनों प्रकरणोंके रचयिता होनेकी यह साक्षी मलयगिरिके कथनसे मेल नहीं खाती । बृहत् टिप्पणिका (१५ वी० शती) के अज्ञात लेखकने लिखा है— 'केवलिभुक्ति स्त्रीमुक्तिप्रकरणम् । शब्दानुशासनकृतशाकटायनाचार्यकृतम् । तत्संग्रह श्लोकाः' । इस परसे यह कहा जाता है कि शाकटायनने शब्दानुशासन और दोनों प्रकरणोंको रचा था । इस सूचनाको मलयगिरिकी सूचनाके साथ पढ़नेसे हम इस परिणाम पर पहुँचते हैं कि दोनों प्रकरणोंका रचयिता शाकटायन यापनीय होना चाहिये क्योंकि उसने शब्दामुशासन भी रचा था । इत्यादि । इस प्रकार प्रो० डा० बिरवेने उक्त दोनों प्रकरणोंके शब्दानुशासनके रचयिता शाकटायन कृत होनेमें सन्देह व्यक्त किया है । आज जिन ग्रन्थकारोंको यापनीय कहा जाता हैं उनमेंसे किसीने भी अपनी कृतिमें अपने सम्प्रदायका निर्देश नहीं किया है । यहाँ तक शाकटायनने भी नहीं किया है । अपनी अमोघवृत्तिके प्रारम्भमें लिखते हैं-- ' महाश्रमण संघाधिपतिर्भगवानाचार्यः शाकटायनः ।' अपने व्याकरणके प्रत्येक पादकी अन्तिम सन्धिमें लिखते हैं- 'श्रुतकेवलिदेशीयाचार्य शाकटायन' यह तो उन ग्रन्थों में पाये जाने वाले आगमोंके निर्देश आदिके आधार पर उन्हें यापनीय कहा जाता है । इसी आधार पर आराधनाके कर्ता शिनार्य और उसके टीकाकार अपराजित सूरि भी यापनीय कहे जाते हैं । इन दोनोंकी ही गुरुपरम्परा न श्वेताम्बर सम्प्रदायमें पाई जाती है और न दिगम्बर सम्प्रदाय में । इससे भी उनकी भिन्नताका अनुमान किया जाता है । अस्तु, श्री प्रेमी जीने लिखा है 'दस स्थिति कल्पोंके नाम वाली गाथा जिसकी टीका पर अपराजितको यापनीय सिद्ध किया गया है, जीतकल्प भाष्यकी १९७२ नं० की गाथा है । श्वेताम्बर सम्प्रदायकी अन्य टीकाओं और निर्युक्तियों में भी यह मिलती है और प्रभाचन्द्रने अपने प्रमेयकमलमार्तण्डके स्त्रीमुक्ति विचार ( नया संस्करण पृ० १३१ ) प्रकरणमें इसका उल्लेख श्वेताम्बर सिद्धांतके रूपमें ही किया है ।' प्रेमीजीका यह लिखना यथार्थ है कि दसकल्पोंवाली गाथा श्वेताम्बर आगम साहित्य में मिलती है । इसीसे आचार्य प्रभाचन्द्रने उसका उपयोग अपने पक्षकी सिद्धि में किया है कि आप लोग आचेलक्य नहीं मानते है, ऐसी बात नहीं है आप भी मानते हैं और उन्होंने प्रमाणरूपसे वही गाथा उद्धृत की है । किन्तु इससे वह गाथा तो श्वेताम्बरीय सिद्ध नहीं होती । मूलाचार में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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