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________________ २२८ भगवती आराधना जोग्गं कारिज्जतो अस्सो दुहभाविदो चिरं कालं । रणभूमीए वाहिज्जमाणओ कुणदि जह कज्जं ॥१९४॥ पुव्वं कारिदजोगो समाधिकामो तहा मरणकाले । होदि हु परीसहसहो विसयसुहपरम्मुहो जीवो ॥१९५॥ श्रुतभावनामाहात्म्यं प्रकटयति सुदभावणाए णाणं दंसणतवसंजमं च परिणवइ । तो उवओगपइण्णा सुहमच्चविदो समाणेइ ।।९६।। 'सुवभावणाए'–श्रूयते इति श्रुतमित्यस्यां व्युत्पत्तो शब्दश्रुतमुच्यते । तस्य भावना नाम तदर्थविषयज्ञानासकृत्प्रवृत्तिः । ननु शब्दश्रुतस्यासकृत्पठनं श्रुतभावना स्यात, ज्ञानं ततोऽर्थान्तरं ? अत्रोच्यते-श्रुतकार्य ज्ञाने श्रुतशब्दो वर्तते इति । न दोषो वा । गच्छतीति गौरिति व्युत्पत्तावपि नाश्वादी गोशब्दो वर्तते । किन्तु रूढिवशात्सास्नादिमत्येव । एवमिहापि श्रयते इति व्यत्पादितोऽपि न सकले श्रोत्रोपलभ्ये वचनसन्दर्भ प्रवर्तते. अपि तु स्वसमयरूढिवशाद् गणधरोपरचिते एव । तथैव श्रुतज्ञानावरणक्षयोपशमनिमित्ते ज्ञाने एव वर्तते । तस्यास्य श्रुतज्ञानस्य भावनया। 'णाणं दंसणतवसंजमं च परिणमइ' समीचीनज्ञानदर्शनतपःसंयमपरिणतिः गा-जिसने पूर्व कालमें तप नहीं किया और विषय सुखमें आसक्त रहा वह जीव मरते समय समाधिकी कामना करता हुआ उस प्रकार परीषहको सहन करनेवाला नहीं होता ॥१९३॥ गा०-जैसे योग्य शिक्षाको प्राप्त अश्व चिरकाल तक दुःखसे भावित हुआ, अर्थात् कष्ट सहनेका अभ्यासी युद्धभूमिमें सवारीमें ले जाने पर कार्य करता है ॥१९४।। गा०-उसी प्रकार पूर्व में तप करनेवाला विषय सुखसे विमुख जीव मरते समय समाधिका इच्छुक हुआ निश्चयसे परीषहको सहनेवाला होता है ॥१९५।। श्रु तभावनाका माहात्म्य प्रकट करते हैं गा०-श्रुतभावनासे सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, तप और संयमरूप परिणमन करता है। ज्ञान भावनासे उपयोगकी प्रतिज्ञाको सुखपूर्वक अचलित होता हुआ समाप्त करता है ।।१९६॥ टी०-'श्रूयते' जो सुना जाता है वह श्रुत है 'ऐसी व्युत्पत्ति करनेपर श्रुतसे शब्दश्रुत कहा जाता है । उसकी भावनाका मतलब है-शब्दके अर्थविषयक ज्ञानमें बार-बार प्रवृत्ति करना अर्थात् उसका अभ्यास करना श्रुतभावना है। शंका-शब्दरूप श्रुतका बार-बार पढ़ना श्रुतभावना है । ज्ञान उससे भिन्न है ? समाधान-श्रुतका कार्य ज्ञान है अतः उसे भी श्रुतशब्दसे कहते हैं। इसमें कोई दोष नहीं है । जो 'गच्छति' चलती है वह गौ है ऐसी व्युत्पत्ति करनेपर भी अश्व आदिको 'गौ' शब्दसे नहीं कहा जाता। किन्तु रूढ़िवश गलकम्बलवाले पशुको ही गौ कहा जाता है। इसी प्रकार यहाँ भी 'श्रूयते' जो सुना जाता है वह श्रुत है ऐसी व्युत्पत्ति करनेपर भी कानसे जो कुछ वचन समूह सुना जाता है उस सबको श्रुत नहीं कहते । किन्तु अपनी आगमिक रूढ़िवश गणधरके द्वारा रचे गये शब्दसमूहको ही श्रुत कहते हैं। उसी प्रकार श्रु तज्ञानावरणके क्षयोपशमके निमित्तसे होनेवाले ज्ञानको ही श्रुत कहते हैं। उस श्रुतज्ञानकी भावनासे समीचीनज्ञान दर्शन तप और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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