SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९४ भगवती आराधना शरीरभोजनमुपकरणं च परित्यक्तमिति गृहीतप्रत्याख्यानः समाहितचित्तो द्रोण्यादिकमारोहेत, परकूले च कायोत्सर्गेण तिष्ठेत् । तदतिचारव्यपोहाथ । एवमेव महतः कान्तारस्य प्रवेशनिःक्रमणयोः । तथा भिक्षानिमित्त गृहं प्रवेष्टुकामः अवलोकयेत्किमत्र बलीव, महिष्यः, प्रसूता वा गावः, दुष्टा वा सारमेया, भिक्षाचराः श्रमणाः वा सन्ति न सन्तीति । सन्ति चेन्न प्रविशेत । यदि न बिभ्यति ते यत्नेन प्रवेशं कुर्यात् । ते हि भीता यति बाधन्ते स्वयं वा पलायमानाः त्रसस्थावरपीडां कुर्युः । क्लिश्यन्ति, महति वा गर्तादौ पतिता मृतिमुपेयुः । गहीतभिक्षाणां वा तेषां निर्गमन गहस्थैः प्रत्याख्यानं वा दृष्ट्वा श्रुत्वा वा प्रवेष्टव्यं । अन्यथा बहव आयाता इति दातुमशक्ताः कस्मैचिदपि न दधुः । तथा च आहारान्तरायः कृतः स्यात् । क्रुद्धाः परे भिक्षाचराः निर्भर्त्सनादिकं कुर्युरस्माभिराशया प्रविष्ठं गृहं किमर्थं प्रविशतीति । अन्ये भिक्षाचरा यत्र स्थित्वा अन्वेषन्ते भिक्षां, यत्र वा स्थितानां गृहिणः प्रयच्छन्ति तावन्मात्रमेव भूभागं यतिः प्रविशेन्न गृहाभ्यन्तरं । गृहिभिस्तिष्ठ प्रविशेत्यभिहितोऽपि नान्धकारं प्रविशत् सस्थावरपीडापरिहृतये । तद्द्वारकाद्युल्लङ्घने कुप्यन्ति च गृहिणः । एलकं वत्सं वा नातिक्रम्य प्रविशेत् । भीताः पलायनं कुर्युरात्मानं वा पातयेयुः । द्वारमप्यायामविष्कम्भहीनं प्रविशतः गात्रपीडा इति संकुटितांगस्य विवृताधोभागस्य वा प्रवेशं दृष्ट्वा पार करना हो तो इस ओर सिद्धोंकी वन्दना करे और जबतक मैं नदीके पार न पहुंचूँ तबतकके लिए मेरे सब शरीर भोजन और उपकरणका त्याग है इस प्रकार प्रत्याख्यान ग्रहण करे और चित्तको समाहित करके नौका आदिमें चढ़े। तथा दूसरे तटपर पहुँचकर कायोत्सर्ग करे। यह कायोत्सर्ग नदी पार करने में लगे दोषकी शुद्धिके लिए किया जाता है। इसी प्रकार किसी महान् वनमें प्रवेश करने और निकलनेपर करना चाहिए। तथा भिक्षाके लिए धरमें प्रवेश करनेसे पूर्व देख ले कि यहाँ, साँड़, भैंस, ब्याई हुई गाय, अथवा दुष्ट कुत्ते और भिक्षाके लिए श्रमण हैं अथवा नहीं हैं। यदि हों तो घरमें प्रवेश न करें। यदि वे पशु साधुके प्रवेशसे न डरे तो सावधानतापूर्वक प्रवेश करे । वे पशु डरनेपर यतिको बाधा कर सकते हैं। अथवा स्वयं भागकर बस और स्थावर जीवोंको पीड़ा पहुँचा सकते हैं। स्वयं कष्टमें पड़ सकते हैं। किसी बड़े गड्ढे में गिरकर मर सकते हैं । अथवा भिक्षा लेकर निकलते हुए साधओंको देखकर और गहस्थोंके द्वारा उनका प्रत्याख्यान सनकर घर में प्रवेश करना च अन्यथा 'बहुतसे साधु आ गये, हम इन्हें भिक्षा देने में असमर्थ हैं ऐसा सोच गृहस्थ किसीको भी भिक्षा नहीं देंगे । और तब आहार में अन्तराय हो जायगा। अन्य भिक्षार्थी क्रुद्ध होकर तिरस्कार करेंगे कि जिस घरमें हम भिक्षा लेते हैं उसमें ये क्यों प्रविष्ट हुए। अन्य भिक्षा लेनेवाले जहाँ खड़े होकर भिक्षाकी प्रतीक्षा करते हैं अथवा जहाँपर खड़े हुए भिक्षार्थियोंको गृहस्थ भिक्षा देते हैं, वहीं तक साधुको जाना चाहिए। घरके भीतर प्रवेश नहीं करना चाहिए। गृहस्थोंके द्वारा 'पधारिये' घरमें प्रवेश कीजिए, ऐसा कहनेपर भी त्रस और स्थावरजीवोंको पीड़ा न पहुंचे इसलिए अन्धकारमें प्रवेश नहीं करना चाहिए। उनके द्वार आदिको लाँघनेपर गृहस्थ क्रुद्ध हो सकते हैं। बछड़े आदिको लाँधकर नहीं जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा करनेसे वे डरकर भाग सकते हैं अथवा साधुको गिरा सकते हैं । लम्बाई चौड़ाईसे रहित द्वारमें प्रवेश करते हुए अंगोंको १. भोगान्तरायः-आ० मु०। २. लभन्ते-आ० मु०। ३. गृहिणः भीतः-आ० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy