SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५६ भगवती आराधना क्रमणं । कालस्य दुष्परिहार्यत्वात्कालाधिकरणव्यापारविशेषाः कालसाहचर्यात्कालशब्देन गृहीताः । मिथ्यात्वमसंयमः, कषायः, रागः, द्वेषः, संज्ञा, निदानं, आर्तरौद्रमित्यादयोऽशुभपरिणामाः, पुण्यासवभूताश्च शुभपरिणामाः इह भावशब्देन गृहीता गृह्यन्ते, तेभ्यो निवृत्तिर्भावप्रतिक्रमणं इति केषांचियाख्यानं । चतुर्विधमित्य परे। निमित्तनिरपेक्षं कस्यचिन्नामत्वेन नियुज्यमानं प्रतिक्रमणमित्यभिधानं नामप्रतिक्रमणं । अशभपरिणामानां विशिष्टजीवद्रव्यानुगतशरीराकारसादृश्यापेक्षया चित्रादिरूपं स्थापितं स्थापनाप्रतिक्रमणं । प्रमाणनयनिक्षेपादिभिः प्रतिक्रमणावश्यकस्वरूपज्ञ'स्तत्रानुपयुक्तः प्रत्ययप्रतिक्रमणकारणत्वात् आगमद्रव्यप्रतिक्रमणशब्देनोच्यते । नो आगमद्रव्यप्रतिक्रमणं त्रिविधं ज्ञायकशरीरभावितद्वयतिरिक्तभेदैः । यथात्मा कारणं प्रतिक्रमणपर्यायस्य, तथा तदीयमपि शरीरं त्रिकालगोचरमिति प्रतिक्रमणशब्दवाच्यं भवति । चारित्रमोहक्षयोपशमसानिध्ये भविष्यत्प्रतिक्रमणपर्याय आत्मा भाविप्रतिक्रमणं । क्षयोपशमावस्थामपगतः चारित्रमोहः नो आगमद्रव्यव्यतिरिक्तकर्म प्रतिक्रमणं । प्रतिक्रमणप्रत्यय आगमभावप्रतिक्रमणं । मिच्छाणाणमिच्छादसणमिच्छाचारितादो पडिविरदोमित्ति एवं स्वरूपज्ञानं । अशुभपरिणामदोषमवबुध्य श्रद्धाय तत्प्रतिपक्षपरिणामवृत्ति!आगमभावप्रतिक्रमण । ___सामायिकात् प्रतिक्रमणस्य को भेदः ? सावद्ययोगनिवृत्तिः सामायिकं । प्रतिक्रमणमपि अशुभमनोवाक्कायनिवृत्तिरेव तत्कथं षडावश्यकव्यवस्था ? और षडावश्यकोंके कालमें गमन आगमन आदि व्यापार न करना काल प्रतिक्रमण है। कालका त्याग तो अशक्य जैसा है अतः कालमें होनेवाले कार्य विशेषोंको कालके सम्बन्धसे काल शब्दसे ग्रहण किया है। मिथ्यात्व, असंयम, कषाय, राग, द्वेष, आहारादि संज्ञा, निदान, आर्त रौद्र इत्यादि अशुभ परिणाम और पुण्यास्रवभूत शुभ परिणाम यहाँ भाव शब्दसे ग्रहण किये हैं। उनसे निवृत्ति भाव प्रतिक्रमण है। ऐसा किन्हीं आचार्योंका व्याख्यान है। ____ अन्य आचार्य प्रतिक्रमणके चार भेद कहते हैं । निमित्तकी अपेक्षा न करके किसीका प्रतिक्रमण नाम रखना नामप्रतिक्रमण है। अशुभ परिणामवाले जीवोंके शरीरका जैसा आकार होता है उस आकारके सादृश्यकी अपेक्षासे चित्रमें अशुभ परिणामोंकी स्थापना स्थापना प्रतिक्रमण है ? प्रमाण नय-निक्षेप आदिके द्वारा प्रतिक्रमण नामक आवश्यकके स्वरूपका जो ज्ञाता उसमें उपयुक्त नहीं है वह प्रतिक्रमण विषयक ज्ञानका कारण होनेसे आगम द्रव्य प्रतिक्रमण शब्दसे कहा जाता है। नो आगम द्रव्य प्रतिक्रमणके तीन भेद हैं-ज्ञायकशरीर, भावि और तद्वयतिरिक्त । जैसे प्रतिक्रमण पर्यायका कारण आत्मा है वैसे उसका त्रिकालवर्ती शरीर भी कारण है इसलिए वह प्रतिक्रमण शब्दसे कहा जाता है। चारित्रमोहके क्षयोपशमके होनेपर जो आत्मा भविष्यमें प्रतिक्रमण पर्यायरूपे होगा वह भावि प्रतिक्रमण है। क्षयोपशम अवस्थाको प्राप्त चारित्रमोह कर्म नोआगमद्रव्य व्यतिरिक्त कर्म प्रतिक्रमण है । प्रतिक्रमणरूप ज्ञान आगम भाव प्रतिक्रमण है । अर्थात् मिथ्याज्ञान, मिथ्यादर्शन और मिथ्याचारित्रसे मैं विरत हूँ इस प्रकारका स्वरूपज्ञान आगमभाव प्रतिक्रमण है। अशुभ परिणामके दोषको जानकर और उसपर श्रद्धा करके उसके प्रतिपक्षी शुभपरिणामोंमें प्रवृत्ति नोआगमभाव प्रतिक्रमण है । शंका-सामायिक और प्रतिक्रमणमें क्या भेद है ? सावद्ययोगसे निवृत्ति सामायिक है और अशुभ मनवचनकायसे निवृत्ति प्रतिक्रमण है तब छह आवश्यककी व्यवस्था कैसे सम्भव है ? १. ज्ञसूत्रा-आ० मु०। २. कस्य प्र-आ० मु० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy