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________________ ३२० Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature विधान किया है। जो क्रियाएँ आज प्रदूषण और र्यावरण के असंतुलन में निमित्त मानी जाती है उसीका निषेध किया गया है। जैसे कुए के जन्न को तालाब के जल में डालना, शुद्ध जल में प्रदूषित जल का संमिश्रण करना, एक जीव को एक प्रदेश से उठाकर दूसरे प्रदेश में छोड़ देना, ठंडे प्रदेश के जीवों को गरम प्रदेश में या गरम प्रदेश के जीवों को ठंडे प्रदेश में छोड़ना, किसी जीव को डराना, भयभीत कर देना आदि आदि । ऐसी क्रियाएँ त्याज्य मानी गई है। प्रस्तुत सूत्र के प्रभाव से जैन धर्म में विलक्षण अहिंसक प्रवृत्तिओं का प्रचार हुआ है जो अन्यत्र अनुपलब्ध है। उसके कुछ दृष्टान्त रोचक एवं ज्ञातव्य होने से यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। १. कोई भी धार्मिक अनुष्ठान में जीवदया की अलग से टीप होती है अर्थात् धनराशि एकत्र की जाती है। जिसका उपयोग जीवों की सुरक्षा हेतु किया जाता है। २. गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश में कुछ प्रदेश के प्रायः सभी गाँवों में पांजरापोल अर्थात् पशुसुरक्षा केन्द्र है जिसमें वृद्ध, अशक्त, बीमार एवं अनाथ पशुओं की सुरक्षा की जाती है। जिसमें खाना, पीना, दवा आदि का समावेश होता है। उस में सभी जीवों का सम्पूर्ण भाव से पालन-पोषण किया जाता है । जिस की सारी व्यवस्था जैनीओं के द्वारा की जाती है । ३. गेहूं, चावल, दाल आदि धान्यों की शुद्धि करते हुए उस में से निकले हुए कीड़ों, जीवों को एकत्रित करके जीवातघर अर्थात् जन्तुघर में छोड़ देते थे वहाँ उसको उचित आहार दिया जाता था ऐसा जीवात घर पाटन में आज भी मौजूद है । पूर्वकाल में अहमदाबाद आदि शहरों में ऐसे स्थल होते थे। यह प्रवृत्ति वर्तमान काल में मन्द हो चुकी है। जिनमंदिर और उपाश्रय-स्थानक आदि के निर्माण में सम्पूर्ण सावधानी बर्ती जाती है। न केवल पीने में ही लाए हुए पानी का प्रयोग होता है किन्तु भवन निर्माण में भी छाने हुए पानी का प्रयोग होता है । वर्तमान में भी बच्चे पटाके न फोड़ने और पतंग न उड़ाने के नियम लेते है । प्रस्तुत क्रियाओं से जीवों को पीड़ा होती है और भयभीत हो जाते है। अत: ऐसी कियाएँ त्याज्य मानी गई है। ६. पर्युषण आदि पर्व के दिनों में कत्लखाने सम्पूर्ण बन्द रखवाते हैं । ७. सामान्यतः सभी जैन घरों में पूजनी (छोटा मुलायम झाडु) रखी जाती है । सुबह गैस चूल्हा जलाने से पूर्व इससे साफ किया जाता है जिस से छोटे जीवों की रक्षा हो सके । ८. पंखीओं को दाना डालना । पानी की व्यवस्था करना आदि-आदि । इस प्रकार सामाजिक अहिंसा के दृष्टान्त देखे जाते हैं । इस में प्रस्तुत इरियावहिया सूत्र का सर्वाधिक प्रभाव है । ऐसा मेरा मंतव्य है । वर्तमान में पर्यावरण की सुरक्षा के लिए प्रस्तुत सूत्र सर्वाधिक उपयुक्त सूत्र है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
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