SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०८ Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature कषायजय भावना - डॉ० नेमीचन्द्र जैन बीसवीं शताब्दी में रचित जैन संस्कृत काव्यों की विविध विद्याएँ पर्याप्त संख्या में समृद्ध हुई हैं । उक्त अनुच्छेदों में कतिपय प्रमुख कृतियों के नामों का उल्लेख मात्र किया गया है । यदि संख्या की दृष्टि से विचार करें तो- मौलिक रचनाओं की ही संख्या निम्न प्रकार प्राप्त होती महाकाव्यम् काव्यग्रन्थ ॐ 39 दूतकाव्य स्तोत्र / स्तुति - १०० शतककाव्य चम्पूकाव्य श्रावकाचार नीतिविषयक काव्य __- १२ पूजा व्रतोद्यापन - ३० १०. दार्शनिक रचनाएँ ११. स्फुट रचनाएँ इनके अतिरिक्त लगभग सो टीकाग्रन्थ और अनेक अन्य कृतियाँ इस शताब्दी में संस्कृत में लिखी गई । . इस शताब्दी में विरचित जैन संस्कृत काव्यों में साहित्य शास्त्रीय और शैलीगत विशेषताएँ समृद्ध रूप में अभिव्यंजित हुई हैं । इनमें रस, छन्द, अलंकार, गुण, ध्वनि आदि तत्त्व यथास्थान व्यवस्थित रूप से प्रयुक्त दृष्टिगोचर होते हैं । उदाहरणार्थ-आचार्य ज्ञानसागर के महाकाव्यों में मुख्य रस शांत है किन्तु सहयोगी रस के रूप में श्रृंगार, वीर, हास्य, वात्सल्य आदि का भी यथास्थान प्रयोग हुआ है । आचार्य ज्ञानसागर के महाकाव्यों में छन्दोंवैविध्य देखते ही बनता है । उन्होंने १७ प्रचलित एवं २९ अप्रचलित इस प्रकार कुल ४६ प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है । उपजाति छन्द कवि का सर्वाधिक प्रिय छन्द है । इनके काव्यों में आचार्य श्री की संगीतप्रियता और आलंकारिकच्छटा का परिपूर्ण निदर्शन हुआ है । ज्ञानसागर जी को अनुप्रास, यमक, उपमा, उत्प्रेक्षा और अपहनुति अलंकार से विशेष लगाव प्रतीत होता है । इनके काव्यों में ६ प्रकार के चित्रबन्धों का भी प्रयोग हुआ है : १. चक्रबन्ध २. गोमूत्रिकाबंध ३. यानबन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy