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श्री वादिराजसूरिकृत पार्श्वनाथ चरित का साहित्यिक मूल्यांकन
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महाकाव्य में प्राकृतिक दृश्यों और वस्तुओं का वर्णन प्रायः आलंबनरूप में, उद्दीपनरूप में, अलंकाररूप में, वस्तुगणना के रूप में और प्रतीक या संकेत के रूप में किया जाता है । इस महाकाव्य में प्रकृति का अधिकतर वर्णन आलंकारिक योजना के अंगरूप में या पूर्वस्थित भाव की उद्दीप्ति के सहायक के रूप में हुआ है ।
प्रस्तुत के वर्णन में कवि ने जिन अप्रस्तुतों का सहारा लिया है, उनमें प्राकृतिक उपादानों की मात्रा बहुत अधिक है । मुख, अलक, नयन, नासिक, दंत, अधर, स्तन आदि का वर्णन करते समय कवि परंपरा अनुसार चन्द्रमा, कमल, सूर्य, भ्रमर, नाग, मृग, मीन, बिम्बाफल, पल्लव, वेल आदि से उपमित करते हैं ।
कवि ने व्यक्ति या अंग-विशेष, घटनाविशेष या प्रसंग विशेष को प्रभाव-समन्वित बनाने के लिये प्रकृति के उपमानों से सहायता ली है । कहीं कहीं कवि ने इससे वर्ण्य विषय को चित्रात्मक या तादृश बनाने में सफलता भी मिली है ।
प्रकृति-वर्णन में प्राकृतिक पदार्थों के नामों की लम्बी सूचि देने से कवि की बहुज्ञता प्रकट होती है, लेकिन यह कविकर्म की सफलता नहीं है ।
कभी कभी प्रकृति-वर्णन उद्दीपन के रूप में और कभी घटनाओं की पृष्ठभूमि के रूप में भी किया है । वसंत और वर्षाऋतु में प्रकृति उद्दीपनविभाव किस तरह बनती है इसका वर्णन प्रायः मिलता है । कभी कभी प्रकृति में मानवीय भावों का आरोपण भी किया गया है, वहाँ प्रकृति सजीव सी हो उठती है ।
ऋतु-परिवर्तन के संधिकाल को भी कवि ने चतुराई से आलेखित किया है । शिशिर की विदाइ और वसंत के आगमन के समय का वर्णन बड़ा ही मार्मिक और चतुराईपूर्ण है । (पृ० १७६ श्लोक २७ पृ० १७७ श्लोक ३०)
वसंत, ग्रीष्म आदि ऋतुओं का भी विस्तृत वर्णन यहाँ उपलब्ध है । यहाँ कवि उपमा, रूपक या उत्प्रेक्षा की सहायता से वर्ण्य विषय को प्रभावक बनाने की कोशिश करते हैं । पाँचवें सर्ग में सब ऋतुओं का आलंकारिक वर्णन है । कामदेव के लोकविजय के उत्सवरूप वसंत ऋतु का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं
भुवनैकजयोत्सवाय कंतोरिव गीजनमंगलस्वनौधैः
मधुना विधिनार्पितांकुरश्रीरजनिष्ट द्रुमयष्टिपालिकासु ॥ (सर्ग-५, ४५) वंसत ऋतु के प्रभाव से जो वृक्षरूपी यष्टिपालिकाओं (ध्वजा दंड को थामने वाली औरतों) पर नाना अंकुर रूपी लक्ष्मी दीखने लगी और भ्रमरीरूपी स्त्रियों के समूह अपने शब्दों से मंगल गीत गाने लगे तो उनसे महाराज कामदेव के लोकविजय का उत्सव सरीखा मालूम होने लगा ।
ऋतुओं के अतिरिक्त कवि ने प्रकृति के अन्य स्वरूप जैसे सरोवर, नदी, पहाड़, वन, सागर, सूर्योदय, चंद्रोदय, संध्या, रात्रि आदि का भी वर्णन किया है ।
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