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श्री वादिराजसूरिकृत पार्श्वनाथ चरित का साहित्यिक मूल्यांकन
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कवि के चरित्रांकन से चरित्र का एक हूबहू चित्र उभरता है । अपनी उर्वर कल्पना के सहारे कवि ऐसी उपमाओं या उत्प्रेक्षाओं की सहायता लेते हैं कि पात्र सजीव हो उठते हैं-मानों चक्षुगोचर ही लगते हैं ।
चरित्रों के ऐसे रूपांकन में कवि की प्रतिभा निखती है। कभी कभी विशिष्ट पात्रों के प्रचलित आदर्शों को पात्र में आरोपित करते हैं। जैसे अश्वपुर के राजा वज्रवीर्य का सर्वगुण संपन्नता इस तरह प्रगट की गई है -
प्रवर्तिते यत्र गुणोदयावहे यागसि मानवेहिता । नवहिता कान्त मदो न वैभवा न वै भवाति प्रथयंति जंतवः ॥ विशेष वादी विदुषां मनीषितो निरस्य दोषानषित् पुरोत्तमम् ।
तदष यं संज्ञदि वज्रवीर्य इन्युदाहरंति श्रुतवम॑वदिनः ॥ (सर्ग ४-६७, ६८) ...इस प्रकार नाना गुणों से शोभित उस अश्वपुर का स्वामी, विद्वानों में श्रेष्ठ राजा वज्रवीर्य था, जिसने अपने शासनबल से उस पुर के समस्त दोष दूर कर दिये थे । जिस समय गुणों का भंडार. दया का आगार. पण्यशाली वह राजा राज्य कर रहा था उस समय लोगों की इच्छायें नवीन नवीन अभीष्ट पदार्थों के आ जाने से पूर्ण हो गईं थी । उनका वैभव-प्रवाह बढ़ गया था । इसलिए उसके राज्य में निवास करनेवाले लोगों ने वैभव की पीड़ा कभी भी न सही थी'धन है और अभीष्ट पदार्थ नहीं मिलते' इस प्रकार का अवसर उन्होंने कभी न पाया था । पात्र का चरित्र-विकास :
उसके पात्र जो वीर हैं, वे जन्म से ही वीर हैं, जो धार्मिक प्रकृति के हैं, वे जन्म से ही धार्मिक हैं । जो दुष्ट हैं, वे जन्म से ही दुष्ट हैं । उनके चरित्र की रूप रेखा पहले से निर्दिष्ट होती है, उनकी हर क्रियाओं से उनकी वही निश्चित विशेषता ही निखर कर सामने आती है। तब भी आरंभ में मरुभूति और कमठ के पात्रों का चरित्र-विकास अलबत्त निश्चित दिशा में ही प्रतीत होता है । कमठ के पात्र की दुष्टता जन्मांतर में भी उसी रूप से प्रतीत होती है, जब मरुभूति के पात्र में कई चढाव-उतार दीखते हैं । उसके पात्रालेखन में वीरत्व और धार्मिकता के विषय में हास, विकास और वृद्धि के लिये अवकाश दिया गया है । कवि हर पात्र को व्यक्तिगत वैशिष्ट्य से समन्वित करने का प्रयत्न करते हैं । प्राप्त परिस्थिति और घटनाओं में पात्रों की विविध मनोदशाओं का चित्रण भी किया है । जैसे मरुभूमि हाथी का जन्म लेता है तब मुनिवचन के उपदेश सुनने के पहले का उसका रुद्र-रूप, प्रकृति की कठोरता और मुनिवचन सुनने के बाद परिवर्तित स्वभाव की कोमलता का हृदयस्पर्शी निरूपण हुआ है । वर्णनकला :
कवि ने पात्र, परिस्थिति, प्रकृति आदि का कल्पनामंडित आलेखन किया है ।
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