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________________ २७२ Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature उदात्त शैली के अनुरूप तथा ग्राम्य शब्द-प्रयोग दोष से मुक्त होती है । ___ संस्कृत महाकाव्य का उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों फलों की प्राप्ति है । श्री पार्श्वनाथ चरित में महाकाव्य के कई लक्षण विद्यमान हैं । वह सर्गबद्ध रचना है, कथावस्तु सर्वाधिक ख्यातिप्राप्त है; काव्यनायक भारतीय संस्कृति के मूलाधाररूप युग पुरुष है, भाषा साहित्यिक, ग्राम्यत्वदोषरहित, पांडित्यपूर्ण, प्रांजल और प्रौढ़ है; जीवन की विविध अवस्थाओं और अनुभूतियों का चित्रण यहाँ प्राप्त है; प्रकृति के अनेक दृश्यों और वस्तु वर्णनों से अलंकृत है; अलंकारों की विशद योजना है और जीवन के चरम उद्देश्य की महान् सिद्धि की उच्च भूमि पर शान्तरस में उसका पर्यवसान होता है । इस तरह महाकाव्य के लक्षणों से संपन्न होने के साथ 'श्री पार्श्वनाथ के अनेक पूर्वभवरूप अवान्तर कथाओं के सहित उनके चरित्र का वर्णन किया गया है।' अन्य महाकाव्यों में समानरूप से जो कुछ विशेषताएँ पायी जाती हैं, वे सब श्री पार्श्वनाथचरित में भी हैं । जैसे तीर्थंकरों की स्तुति से काव्य का प्रारंभ होना, पूर्व कवियों और विद्वानों का स्मरण, सज्जन-प्रशंसा, दुर्जन-निन्दा, काव्य-रचना में प्रेरणा और सहायता करनेवालों की स्तुति, विनम्रता-प्रदर्शन, काव्य-विषय के महत्त्व का वर्णन, चरित्र-नायक और उनसे सम्बन्धित व्यक्तियों के विभिन्न भवान्तरों का वर्णन, कथा के आवश्यक अंग के रूप में यहाँ भी प्राप्त होता है । भवान्तर वर्णन का मुख्य कारण जैनों की कर्म-फल प्राप्ति में अचल आस्था है । परिणाम स्वरूप यह काव्य रोमांचक शैली से युक्त होने पर भी वैराग्यमूलक और शान्तरस पर्यवसायी है । इन महाकाव्य का उद्देश जैन तीर्थंकर के चरित्र वर्णन से जैनधर्म का प्रचार करने का है तथापि उनमें प्रेम और युद्ध का वर्णन पर्याप्त से अधिक मात्रा में मिलता है । प्राकृतिक वस्तुओं -प्रभात, संध्या, रजनी, चन्द्रमा, नदी, सागर, पर्वत आदि से लेकर स्त्रियों के अंग-प्रत्यंग-मुख, केश, नाक, आँख, अधर, उरोज, बाहु, त्रिवली, उरु, पाद आदि के रसपूर्ण वर्णन में कवि की रुचि प्रगट होती है । अवसर मिलने पर रति क्रीडा वर्णन से भी मुख नहीं मोड़ा है। इसी तरह युद्ध-वर्णन में भी उन्होंने रण-प्रयाण से लेकर उसके समस्त कौशलों का वर्णन आयुधों के नाम गिनाते हुए किया है । अपने धर्म के प्रचार के प्रति अत्यधिक सजग होते हुए भी जैन कवियों ने जीवन की वास्तविकताओं की उपेक्षा नहीं की है । चरित्रनायक के जीवन के आलेखन में परिवर्तन करना संभव नहीं था, इसलिये शायद अपनी कल्पनाओं से प्रचुर वर्णन करके अपनी कवित्वशक्ति का परिचय दिया है । प्रेम और युद्ध के वर्णन में कल्पनाचित्र और अतिशयोक्तिपूर्ण आलेखन भी मिलते हैं । कवि ने धार्मिक और साहित्यिक आदर्शों की पृष्ठभूमि की सीमाओं में रहकर, अपने पात्रों और चरित्रनायक की परंपरागत विशेषताओं को चित्रित करने में काफ़ी सफलता पायी है । वाग्विदग्धता और मार्मिक आलेखन से पात्रों का निरूपण हृदयग्राही और प्रभावक बना है । जैसे एक चित्रकार दो-तीन बार के तुलिका-संचालन से एक सजीव चित्र प्रस्तुत करता है, इसी तरह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
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