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________________ २५९ वाग्भट द्वितीय का गुणविचार १. कान्ति : कान्ति उज्ज्वलता को कहते हैं, जिसमें लौकिक अर्थ का अतिक्रमण न होता हो । लौकिकार्थानतिक्रमेणौज्ज्वल्यं कान्तिः ।' इसे उदाहृत करते हुए वृत्ति में वाग्भट ने 'सजलनिबिडवस्त्र०.....' इत्यादि श्लोक दिया है। वाग्भट के इस कान्तिगुण का स्वरूप वामन के शब्दगुण कान्ति के समान है । भोज' एवं वाग्भट प्रथम भी इस गुण का स्वीकार करते हैं लेकिन उन दोनों आचार्योने बन्धगत उज्ज्वलता का स्पष्ट निर्देश किया है, जो वामन ने वृत्ति में तो उल्लिखित किया था, किन्तु वाग्भट द्वितीय में इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है । २. सौकुमार्य : कठोरता के अभाव को सौकुमार्य कहते हैं । अकाठिन्यं सौकुमार्यम् । उसका उदा. है-'जिनवरगृहे कौन्तेयस्य....इत्यादि', जो वृत्ति में दिया गया है । वामन में शब्दगत सौकुमार्य गुण का स्वरूप ऐसा ही है । उन्होंने बन्धगत अजरठत्व याने कोमलता को सौकुमार्य नाम दिया है जिसका स्वीकार शायद वाग्भट ने अकाठिन्य शब्द से किया है । वामन ने अर्थगुण सौकुमार्य में जो अपारुष्य का विचार किया है वह यहाँ अभिप्रेत नहीं होगा। ३. श्लेष : श्लेष का लक्षण इस प्रकार है यत्र पदानि परस्परस्फूर्तानीव, स श्लेषः ।११ अर्थात्, जहाँ पर परस्पर जुडे हुए-से हों, वह श्लेष है । जैसे कि, 'जयन्ति बाणासुर०. . .' इत्यादि । इस गुण का निरूपण वाग्भट प्रथम के अनुरूप है । वाग्भट प्रथम ने कहा है :- श्लेषो यत्र पदानि स्युः स्यूतानीव परस्परम् ।१२ जहाँ पद भिन्न होने पर भी मानो परस्पर जुड़े हुए हों ऐसा प्रतीत होता हो, वह श्लेष है । वाग्भट प्रथम के टीकाकार सिंहदेवगणि ने यहाँ जो स्पष्टता की है वह ध्यानार्ह है । वे कहते हैं- पृथग्भूतान्यपि पदानि यत्र स्यूतानीवैकश्रेणिप्रोतानीव समस्तानीव परस्परं भवन्ति स श्लेषगुणः ।१३ अर्थात्, जहाँ पद भिन्न होने पर भी जुडे हुए-से हों, एक श्रेणि में ग्रथितसे हों, मानो कि समास में रखे गए हों ऐसे दीखते हों उसे श्लेष कहते हैं । यह बात वामन के शब्दश्लेष में प्राप्त है ही । उन्होंने बन्धगत मसृणता को श्लेष कहा है, जिसमें अनेक पद एक जैसे दीखते हैं । ४ अर्थव्यक्ति : जहाँ सारल्येन अर्थ प्रतीत होता हो वह अर्थव्यक्ति है । यत्र सुखेनार्थप्रतीतिः सार्थव्यक्तिः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
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