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________________ "श्लिष्टकाव्य" साहित्य के प्रति जैन विद्वानों का योगदान २५३ "भूभारोद्धरतो रसातलगमः स्वर्गोऽप्यशोभावनः सारसंपपदः प्रभावसविता सत्यागवेष्टोऽदितः । व्यापन्नीरस सिद्धराजवसुधा मद्रक्षरामेवली । सन्नागः सहरीरसाहितमहोराज्याय साधूरसेः ॥ टीकाकार ने इस पद्य के सिद्धराज, स्वर्ग, शिव, ब्रह्मा, विष्णु, भुवनपति, कार्तिकेय, गणेश, इन्द्र, वैखानर आदि सौ अर्थों की व्याख्या की ।२ । प्रसिद्ध आचार्य हेमचन्द्र सूरि के शिष्य वर्धमानसागर गणि ने 'कुमारविहारप्रशस्ति काव्य' के एक श्लोक को एकसौ सोलह (११६) अर्थों में व्याख्या की । इनका समय १२वीं शताब्दी है । श्लोक इस प्रकार है : गम्भीरः श्रुतिभिः सदाचरणतः प्राप्तप्रतिष्ठोदयः सत्कान्तारचितप्रियो बहुगुणो यः साम्यमालम्बते । श्री चालुक्यनरेश्वरेण विविधश्रीहेमचन्द्रेण च श्रीमद्वाग्भाहमन्त्रिणा च परिबादिन्या च मन्त्रेण च ॥ तपाच्छीय पं० हर्षकुल ने नमस्कार मन्त्र के प्रथम पद्य के लिए एक सौदस (११०) अर्थमयी शतार्थी बनायी । इसका उल्लेख विजयविमल ने "हतेद्वयविभंगी" टीका में किया है । श्रीलावण्यधर्म के शिष्य उदयधर्मगणि ने "दोस समय" शब्द के एक सौ एक (१०१) अर्थ किये है । यह "दोस समय" शब्द धर्मदासगणि रचित "उपदेशमाला" की इक्यानवीं (५१) गाथा का प्रारम्भ है । ग्रन्थ का रचनाकाल १६०५ ईसवी है । ग्रन्थअद्यावधि अप्रकाशित है । १४७५ ईसवी में "त्रिसन्धानस्तोत्र" नामक पंचपद्यात्मक स्तोत्र रत्नशेखर सूरि ने की है। "उवसग्ग हरस्मरणम्"- यह श्रीजिनप्रभसूरि कृत अर्थकल्पलतावृत्ति अनेकार्थी है । "अष्टलक्षी" ग्रन्थ केवल भारतीय साहित्य का ही नहीं अपितु विश्वसाहित्य का एक अद्वितीय रत्न है । इतिहास पर दृष्टिपात करने पर ज्ञात होता है कि सन् १५९२ में काश्मीर जाते हुए सम्राट अकबर ने जब लाहौर नगर में विश्राम किया तब जयचन्द्रसूरि विद्वानों की सभा में उपस्थित था । वहाँ उसके शिष्य समयसुन्दरसूरि ने स्वरचित अष्टलक्षार्थी ग्रन्थ सुनाया । __ इसमें संस्कृत भाषा के शब्दत्रय समुच्चय रुप "राजानो ददते सौख्यम्" इस वाक्य के आठ लाख अर्थ समाहित किये गये है । यह रचना मुद्रित एवं प्रकाशित है (See Introduction P. B. of भानुचन्द्रंगण रचित, ed. M. D. Desai, Singhi Jain Series No. 15, Bombay, 1941.) श्लेष द्वारा पाँच अर्थों को अभिव्यक्त करने वाला पद्य इस प्रकार है ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
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