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________________ २५० Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature समझाकर उसके वासनामय प्रस्ताव को बार-बार निरस्त करने का प्रयत्न करती है और अनेक प्रकार से उनमें धर्मविवेक जागृत करती है। किन्तु अन्त में रानी उसकी स्वामिनी है । उसकी भक्ति, सेवा और आदेशपालन दासी का कर्तव्य है । अतः स्वामिभक्ति में आदेश मानकर दासी छलप्रपञ्च करती है । अपने कर्तव्यपालन के दौरान वह द्वारपालों से प्रताडित भी होती है, किन्तु रहस्योद्घाटन नहीं करती और रानी के आदेशानुसार सुदर्शन को श्मशान से अन्तःपुर तक अपनी पीठ पर लादकर पहुँचाने में सफल हो जाती है । इस प्रकार कवि ज्ञानसागर ने इस महाकाव्य में समाज के अनेकविध व अनेक वर्णीय पात्रों का उपयोग किया है, जिनमें वैश्यवर्णीय व दासी पात्रों को आदर्श रूप में एवं ब्राह्मणी, रानी, राजा वगैरह के स्वरूप को कृत्रिम, वासनामय, दम्भ एवं अहंकार की मूर्ति के रूप में निरूपित किया है, जो परम्परागत पद्धति के वर्णनों से अलग हटकर प्रगतिवादी मौलिकता की स्थापना कही जा सकती है। यह रचना लोक में सामान्य जन का उत्साह बढ़ाने में समर्थ है । इनके विषय प्रतिपादन से जैनधर्म का प्रचार किंवा सद्गुणों का विस्तार हो सकता है । इस ग्रन्थ की सूक्तियाँ परम लोकोपयोगी हैं, जिनका प्रसंग से अलग हटकर भी भारतीय लोकजीवन से साक्षात् सम्बन्ध कहा जा सकता है । पादटीप : १. सुदर्शनोदय महाकाव्य २/३ २. सुदर्शनोदय महाकाव्य २/३ ३. सुदर्शनोदय महाकाव्य २/२ ४. सुदर्शनोदय महाकाव्य २/६ ५. सुदर्शनोदय महाकाव्य ३/३५ ६. सुदर्शनोदय महाकाव्य ४/१६ ७. सुदर्शनोदय महाकाव्य ४/३० ८. सुदर्शनोदय महाकाव्य ८/२ ९. सुदर्शनोदय महाकाव्य ७/२१ १०. सुदर्शनोदय महाकाव्य ८/१० ११. सुदर्शनोदय महाकाव्य ८/३ १२. सुदर्शनोदय महाकाव्य ८/१० १३. सुदर्शनोदय महाकाव्य ४/४० १४. सुदर्शनोदय महाकाव्य ४/४१ १५. सुदर्शनोदय महाकाव्य ४/४५ १६. सुदर्शनोदय महाकाव्य ८/१४ १७. सुदर्शनोदय महाकाव्य ८/१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
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