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Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
आचार्य हेमचन्द्र के एक अन्य प्रमुख शिष्य गुणचन्द्र, आचार्य रामचन्द्र के सहाध्यायी और घनिष्ठ मित्र थे । 'नाट्यदर्पण' और 'द्रव्यालङ्कारवृत्ति' के कर्ता के रूप में रामचन्द्र के साथ गुणचन्द्र का नाम संयुक्त रूप से प्राप्त होता है । यद्यपि दोनों की कर्तृत्वप्रकारता के सम्बन्ध में कोई विवरण उपलब्ध नहीं है तथापि दोनों की समाप्त कर्तृकता प्रतीत होती है । यह सम्भावना कहाँ तक सही हो सकती है कि आचार्य रामचन्द्र की नेत्रज्योति विलुप्त हो जाने के पश्चात् उपर्युक्त दोनों ग्रन्थों के लेखन में गुणचन्द्र ने रामचन्द्र के सहायक का दायित्व निभाया होगा—कहा नहीं जा सकता । इसकी प्रामाणिकता की परख इस तथ्य से की जा सकती है इन दोनों ग्रन्थों के सहलेखकत्व के सिवाय गुणचन्द्र के नाम से अन्य कोई ग्रन्थ नहीं मिलता जबकि रामचन्द्र के नाम से छोटेबड़े अनेक ग्रन्थ उपलब्ध हैं ।
आचार्य रामचन्द्र सूरि का कर्तृत्व संस्कृतसाहित्य में आचार्य रामचन्द्र सूरि की ख्याति 'शतप्रबन्धकर्ता' के रूप में है। उन्होंने अपनी अनेक कृतियों में स्वयं को सौ ग्रन्थों का कर्ता कहा है :
'प्रबन्धशतविधाननिष्णातबुद्धिना'-(प्रस्तावना, कौमुदीमित्राणन्द) । 'प्रबन्धशतकर्तृमहाकवे रामचन्द्रस्य'-(प्रस्तावना, निर्भयभीमव्यायोग) ।
दुर्भाग्यवश उनके अधिकांश ग्रन्थ अनुपलब्ध हैं और अत तक केवल ३९ (उनतालीस) ग्रन्थ ज्ञात हो सके हैं । इनमें से कुछ ही ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ है और शेष ग्रन्थ मातृका ग्रन्थों के रूप में इतस्ततः ग्रन्थालयों में प्राप्त है । आचार्य रामचन्द्र सूरि के उपलब्ध ग्रन्थों का विवरण अधोलिखित है :--
१. नाट्यदर्पण (प्रकाशित), २. नलविलासनाटक (प्रकाशित), ३. कौमुदीमित्राणन्द प्रकरण (प्रकाशित), ४. निर्भयभीमव्यायोग (प्रकाशित), ५. सत्यश्रीहरिश्चन्द्रनाटक (प्रकाशित), ६. कुमारविहारशतक (प्रकाशित), ७. मल्लिकामकरन्द प्रकरण, ८. रोहिणीमृगाङ्कप्रकरण, ९. यादवाभ्युदयनाटक, १०. राघवाभ्युदयनाटक, ११. रघुविलासनाटक, १२. यदुविलासनाटक, १३. वनमालानाटिका, १४. सुधाकलश, १५. द्रव्यालङ्कारवृत्ति, १६. युगादिदेवद्वात्रिंशिका, १७. व्यतिरेकद्वात्रिंशिका, १८. प्रसादद्वात्रिंशिका, १९. हैमबृह्वृत्तिन्यास, २०. नेमिस्तव, २१. आदिदेवस्तव, २२. मुनिसुव्रतदेवस्तव, २३. जिनस्तोत्राणि ।
उपलब्ध शेष ग्रन्थ (क्रम संख्या २५ से ३९) सामान्य जिनस्तव हैं । शतप्रबन्धों में से अवशिष्ट ६१ (इकसठ) ग्रन्थों के सम्बन्ध में अभी तक कुछ भी ज्ञात नहीं है। उनकी विद्यमानता और उपलब्धिसम्भावना क्षीण प्राय है ।
__'नाट्यदर्पण' नाट्यशास्त्र का ग्रन्थ है जो पूर्ववर्ती नाट्यसिद्धान्तों से प्रभावित है । यह कारिकाशैली में लिखा गया है और इस पर स्वोपज्ञवृत्ति भी है । यह ग्रन्थ चार 'विवेकों' में विभक्त है । रामचन्द्र-गुणचन्द्र ने रस को केवल सुखात्मक ही नहीं अपितु दुःखात्मक भी माना है । इनकी यह मान्यता अन्य आचार्यों से हटकर है । 'द्रव्यालङ्कारवृत्ति' .न्यायशास्त्र का ग्रन्थ है ।
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