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जैनों की सैद्धांतिक धारणाओं में क्रम-परिवर्तन
नंदलाल जैन
जैन धर्म और दर्शन के अध्ययन से ऐसा लगता है कि जन्मना जैन बने रहना अत्यंत सरल है, किन्तु कर्मणा जैन बन पाने का प्रयत्न ऊहापोह का शिकार बनता दिखता है । विभिन्न युगों में धर्म की परिभाषाओं के विकास का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि यह क्रियाकांड, ज्ञानयुग, भक्तियुग एवं वैज्ञानिक युग के परिवर्तनों से गुजरा है। इसमें 'सर्वजन हिताय' से 'व्यक्ति हिताय' का चरण आया और अब फिर 'बहुजन हिताय' की झलकियाँ दिखने लगी हैं । वस्तुतः धर्म का जो स्वरूप ज्ञानवादी और वैज्ञानिक युगों में निखरता दिखा है, उसने नयी पीढ़ी को आकर्षित किया है । इससे नई पीढ़ी की ओर परम्परावादियों की आँखे भी उठी हैं, पर वह उसकी परवाह किये बिना धार्मिक मान्यताओं का विश्लेषणात्मक परीक्षण करते हुए उसे व्यावहारिक और वैज्ञानिक रूप देने में लगी हुई है ।
कार्ल सागन ने बताया है कि पुरातन धार्मिक मान्यताओं या विश्वासों के मूल ' में बौद्धिक छानबीन के प्रतिरोध की धारणा पाई जाती है । यही वृत्ति वर्तमान धार्मिक अनास्था का कारण है । इसी कारण, गैलीलियो, स्पिनोजा, व्हाइट आदि जिन पश्चिमी अन्वेषकों ने ऐसी खोजें की जो प्रचलित धार्मिक मान्यताओं के विरोध में थीं, उन्हें दंडित किया गया । यह भाग्य की बात है कि विश्व के पूर्वी भाग में ऐसा नहीं हुआ । परंतु यह माना जाता है कि अनेक प्राचीन धार्मिक मान्यतायें प्रचलित सामाजिक, राजनीतिक (जैसे राजा के दैवी अधिकार आदि) एवं आर्थिक (गरीब और धनिकों का अस्तित्व आदि) स्थिति को यथास्थिति बनाये रखने में सहायक रही हैं । जो धर्मसंस्थायें इनमें होने वाले परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील नहीं होती, वे जीवन्त
और गतिशील नहीं रह पातीं । जो धर्मसंस्थायें बौद्धिक एवं वैज्ञानिक विश्लेषण पर जितनी ही खरी उतरती हैं, वे उतनी ही दीर्घजीवी होती हैं । उनमें उतना ही सत्यांश होता है ।
आधुनिक तर्कसंगत विश्लेषण एवं अनुगमन के युग में सागन का मत जैन मान्यताओं पर पर्याप्त मात्रा में लागू होता है । यही कारण है कि उसकी मान्यताओं में समय-समय पर परिवर्धन, विस्तारण एवं संक्षेपण हुए हैं और वह युगानुकूल बना रहा है । इस दृष्टि से यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि अनेक धार्मिक संत और विद्वान् धार्मिक सिद्धांतों की कालिक सत्यता एवं अपरिवर्तनीयता के मापदण्ड को आधार बनाकर उसमें वैज्ञानिकता, परिवर्तनशीलता या संवर्धनशीलता की उपेक्षा कर देते हैं । अभी एक पुस्तक प्रकाशित हुई है, 'साइंटिफिक
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