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अलंकारदप्पण : प्राकृत भाषा का एकमेव अलंकारग्रन्थ - परिचय और कुछ विशेषताएँ
१८१ ४. अ० द० में संभवतः अपने उदाहरण के साथ अन्य के उदाहरण भी उटैंकित है, आम तौर
पर व्यावहारिक उद्धरण प्रतीत होते हैं । ५. अ० द० के अनन्वयोपमा, असम जैसे कई उपमा प्रकार मम्मट, शोभाकर इत्यादि के
अलंकारग्रन्थों में स्वतंत्र सादृश्यमूलक अलंकार के रूप में स्वीकृत हुए । ६. अ० द० के गुणकलिता आदि उपमाभेद सर्वथा नवीन है । कुछ भेद की पश्चात् काल में
नामादि से रद्दोबदल हुई है। जैसे अ० द० की शृंखलोपमा ही रसनोपमा है । गुणकलिता, विगुणरूपा, श्रुतिमिकिता, एकक्रमा, तलिलप्सा आदि अ० द० के उपमाभेद अनुगामियों ने रद्द कर दिये हैं । अ० द० की विकल्पिता ही कल्पितोपमा है । आगे देखा कि, विशेषालंकार
वास्तव में एक गुणहानिरूपा विशेषोक्ति है । ७. द्रव्योत्तर आदि उत्तर के भेद और आदर्श अलंकार अ० द० तक ही सीमित रहें । ८. 'अलंकार परंपरा' की यह अनूठी कृति है । अलंकार के व्यापक अर्थ 'काव्यसौन्दर्य' को अ० द० भी मानता-जानता है ।
इति शिवम् ।
अ० द० में उल्लिखित अलंकारों की वर्गानुसार तालिका
अलंकारवर्ग
अ० द० में निरूपित अलंकार विशेषतः उल्लेखनीय अनुप्रास, बहुश्लेष, यमक अर्थालंकारों के बीच में ही उसकी
चर्चा अलग से निर्देश नहीं ।
१.. शब्दालंकार
अर्थालंकार सादृश्यमूलक
उपमा (१७ प्रकार), रूपक, अपहर्तृति, प्रतिवस्तूपमा, (प्रकाररूप),
अनन्वय, प्रतिवस्तूपमा को अ०द० कार उपमा में ही अंतर्भावित करना चाहते हैं । अ० द०
की अतिशयोपमा
ही अतिशयोक्ति है ।
उत्पेक्षा, अतिशय, दीपक, अर्थान्तरन्यास, संदेह, परिकर, ' सहोक्ति, समासोक्ति (अन्यापदेश, भाव का दूसरा प्रकार), अप्रस्तुतप्रशंसा, व्यतिरेक, रोध, आक्षेप, (निदर्शन), संयोगिता (तुल्ययोगिता), श्लेषा, व्यपदेश स्तुति, उपमारूपक, उत्प्रेक्षावयव
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