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________________ १५८ Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature प्रामाणिक स्रोत के बिना आज यह निश्चय कर पाना अत्यन्त कठिन है कि मूल नियुक्तिकार कौन हुए ? व्याख्या-साहित्य में अनेक ऐसे प्रमाण मिलते हैं, जो भद्रबाहु प्रथम को नियुक्तिकार सिद्ध करते हैं । पाश्चात्य विद्वान् विंटरनित्स और हीरालाल कापडिया० भद्रबाहु प्रथम को नियुक्तिकार के रूप में स्वीकार करते हैं । नियुक्ति की विषय-वस्तु एवं ऐतिहासिक घटना प्रसंगों के आधार पर कुछ विद्वानों का मंतव्य है कि नियुक्तियों के रचनाकार भद्रबाहु द्वितीय होने चाहिए । उनका मानना है कि भद्रबाहु द्वितीय से पूर्व नियुक्तियों का कोई व्यवस्थित रूप नहीं था । प्रकीर्णक रूप से गुरु अपने शिष्य को मूल सूत्र का ज्ञान कराने के लिए पद्यबद्ध व्याख्या कर देते लेकिन भद्रबाहु द्वितीय ने उन्हें व्यवस्थित करके ग्रंथ का आकार दिया । इस संदर्भ में पंडित दलसुखभाई मालवणिया का मंतव्य भी पठनीय है । हमारे अभिमत से मूल नियुक्तिकार भद्रबाहु प्रथम थे । भद्रबाहु द्वितीय ने उसको विस्तार या व्यवस्थित रूप प्रदान किया । इस अभिमत की पुष्टि में नीचे कुछ हेतु प्रस्तुत किए जा रहे हैं - १. मूलाचार में आवश्यकनियुक्ति की अनेक गाथाएँ पायी जाती हैं । आचार्य वट्टकेर ने स्पष्ट रूप से आवश्यकनियुक्ति का उल्लेख किया है आवस्सयनिज्जुत्ती, वोच्छामि जहाकम समासेणं । आयरियपरंपराए, जहागदा आणुपुष्वीए ॥ (मूला. ५०३) उक्त उल्लेख से स्पष्ट है कि आचार्य परम्परा से उन्हें जो आवश्यकनियुक्ति प्राप्त हुई है, उसका उल्लेख उन्होंने मूलाचार में किया है । मूलाचार में स्पष्ट कहा है कि नियुक्ति की नियुक्ति (अर्थात् आवश्यक नियुक्ति की संक्षिप्त नियुक्ति) मेरे द्वारा कही गयी है । विस्तार से जानने के लिए अनियोग (अर्थात् अनुयोग) से जानना चाहिए ।१२ यहाँ अनियोग शब्द आवश्यकनियुक्ति के लिए प्रयुक्त हुआ है, ऐसा प्रतीत होता है क्योंकि आवश्यकनियुक्ति में अनुयोग के द्वारा ही हर विषय की व्याख्या हुई है। मूलाचार में नियुक्ति साहित्य एवं प्रकीर्णक की अनेक गाथाएँ शब्दशः मिलती हैं। केवल शौरसेनी भाषा का प्रभाव उन गाथाओं में स्पष्ट दिखाई देता है । पंडित सुखलालजी संघवी ने मूलाचार को संग्रह ग्रंथ माना है ।१३ नरोत्तमदास ने इसे संपादित ग्रंथ माना है, जिसका काल तीसरी शताब्दी के लगभग स्वीकार किया है ।१४ मुनि दर्शनविजयजी ने मूलाचार को श्वेताम्बर जैन ग्रंथों से उद्धृत माना है ।१५ इन अभिमतों से स्पष्ट है कि भद्रबाहु प्रथम द्वारा रचित आवश्यकनियुक्ति से आचार्य वट्टकेर ने सामायिकनियुक्ति की गाथाएँ ली हैं । इसके अतिरिक्त महावीर के बाद आचार्य भद्रबाहु ऐसे आचार्य हुए जिन्हें दोनों परम्पराएँ समान रूप से महत्त्व देती हैं अतः यह तो संभव लगता है कि भद्रबाहु प्रथम की गाथाओं को वट्टकेर ने अपनी रचना में स्थान दिया हो पर वट्टकेर की रचना को भद्रबाहु द्वितीय ने लिया हो, यह बात तर्क-संगत नहीं लगती क्योंकि उस समय तक संघभेद स्पष्ट रूप से हो गया था अतः आदान-प्रदान की स्थिति संभव नहीं थी ।१६ २. नियुक्तियाँ आगमों की प्रथम व्याख्या है। नियुक्तियों के बाद भाष्य, चूर्णि, 'टीका आदि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
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