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याकोबी के आचारांग और अन्य आचारांग के संस्करणों की पिशल के व्याकरण के साथ भाषाकीय तुलनात्मक
अध्ययन
शोभना आर. शाह
पिशल महोदय ने याकोबी के आचारांग के संस्करण का · तथा उनके द्वारा दी गई अर्धमागधी व्याकरण की दोनों की सहायता लेने का उल्लेख अपने तुलनात्मक प्राकृत व्याकरण में किया है। फिरभी याकोबी के पाठों में जो प्रयोग पालि के समान (अर्थात् मध्यवर्ती व्यंजनों में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता) मिलते हैं, उनका अपने प्राकृत व्याकरण में अर्धमागधी प्राकृत के अन्तर्गत उल्लेख ही नहीं किया है, परन्तु ऐसे प्रयोगों का जो महाराष्ट्री प्राकृत से प्रभावित हो गए थे, उनका ही उल्लेख किया है । इस शैली से अर्धमागधी प्राकृत की मौलिकता को बडी ही हानि हुई है और अर्धमागधी आगम ग्रंथों के पाश्चात्य संपादकों ने पाठों के चुनाव में गलती कर दी । अर्थात् मूल अर्धमागधी प्रयोगों के बदले में महाराष्ट्री प्राकृत से प्रभावित प्रयोगों को उन्होंने जैन आगमों के अपने संस्करणों में प्राथमिकता देकर मूल अर्धमागधी भाषा के विषय में एक भ्रान्त धारणा उपस्थित कर दी । जैसाकि जैन आगमों के गहन अध्येता आगमप्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी के मन्तव्य से (देखिए, उनके द्वारा सम्पादित कल्पसूत्र की प्रस्तावना) भी यही प्रमाणित हो रहा है। अत: अर्धमागधी प्राकृतभाषा (जो सबसे प्राचीन प्राकृतभाषा है) ध्वनिपरिवर्तन सम्बन्धी व्याकरण संशोधित करके पुनः लिखा जाना चाहिए, क्योंकि कइ विद्वानों की दृष्टि में अर्धमागधी भाषा को पालि भाषा के समान होना बताया गया है । इसी सम्बन्ध में हम याकोबी के आचारांग के संस्करण और अन्य संस्करणों तथा पिशल के प्राकृत के तुलनात्मक व्याकरण से कुछ शब्द-प्रयोगों के उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं । इससे हमारा मन्तव्य स्पष्ट हो जायेगा ।
यहाँ पर मात्र मध्यवर्ती त, द, ध व्यंजनों के ही उदाहरण दिये गए हैं, परंतु अन्य व्यंजनों के इसी तरह के उदाहरण प्रस्तुत किये जा सकते हैं ।
__ मध्यवर्ती-त . याकोबी' सूत्र नं. शुबिंग मजैवि पिशल पेरा नं. अच्चेति २.१.३
अच्चेइ अच्चेति अच्चेइ १६३, ४९३ अन्नतरीओ १.१.२,४ अन्नयरीओ अन्नतरीतो अन्नयरीओ
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