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________________ 15 सीमाचिह्न के रूप में चिरस्मरणीय रहेगा । अध्यापन और संशोधन के कार्य के साथ साथ 'प्राकृत और जैन विद्या' के विकास के लिए उन्होंने १९७९ में "प्राकृत जैन विद्या विकास फंड' की स्थापना की जिसके वे मानद मंत्री थे । इस संस्था द्वारा १४ ग्रंथ प्रकाशित किये गये हैं, उनमें प्राकृत कोश, प्राकृत व्याकरण, जैन आगम, जैन धर्म-दर्शन, प्राचीन जैन गुजराती साहित्य आदि विविध विषयों का समावेश होता है जिनका शैक्षणिक दृष्टि से बहुत महत्त्व है । प्राकृत भाषा - साहित्य में प्रवेश करने के इच्छुक विद्यार्थियों के लिए उनकी कक्षा के अनुरूप प्रमाणभूत शैक्षणिक सामग्री की ये ग्रंथ पूर्ति करते हैं । विद्या - प्रिय अध्यापक और कर्मठ संशोधक डॉ० के० आर० चन्द्रा का पारिवारिक जीवन भी अत्यंत सुखी है । सुशील सेवाभावी, तपस्वी एवं धार्मिक प्रवृत्तिमय जीवन-साथी उनकी पत्नी उर्मिला बहिन के साथ ई० स० १९५५ से उनके दीर्घकालीन दाम्पत्य जीवन के फलस्वरूप उनको दो पुत्र और एक पुत्री हैं । १. उनका ज्येष्ठ पुत्र नरेन्द्रकुमार जनरल मेडिसीन में एम० डी० है और अहमदाबाद में ही अपना स्वतंत्र मेडिकल नर्सिंग होम चलाता है । २. छोटा पुत्र प्रवीणकुमार, पेथोलोजी में एम० डी० है और अपनी स्वतंत्र लेबोरेटरी अहमदाबाद में ही चलाता है । ३. उनकी सबसे छोटी संतान पुत्री हीनाकुमारी है जो एम० कॉम० है और उसका विवाह मुंबई के एक परिवार में श्री संभ्रान्त पुखराजजी पोरवाल के इन्जिनियर पुत्र तुषार पोरवाल के साथ हुआ है । Jain Education International For Private & Personal Use Only रमणिक शाह पूर्व अध्यक्ष, प्राकृत पालि विभाग भाषासाहित्य भवन, अहमदाबाद www.jainelibrary.org
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
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