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डॉ० के० आर० [ ऋषभ ] चन्द्र की संक्षिप्त जीवनी
और उनकी विद्याकीय प्रगति
विश्व एक ऐसा रंगमंच है, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के अभिनय का पटाक्षेप हुआ करता है । शेष रह जाते हैं—जीवन के खट्टे-मीठे संस्मरण । मृत्यु एक जीवन का अन्त है, तो दूसरे का आदि बिन्दु । इसमें घटित अनेक घटनायें तो सामान्य हुआ करती हैं, लेकिन कुछ व्यक्तिओं की कार्यशैली और जीवनादर्श ऐसे होते हैं कि वे युगों तक याद किये जाते हैं । ऐसे व्यक्तियों में एक थे डॉ० के० आर० चन्द्र । परिवर्तन प्रकृति का नियम है । मानव जीवन में इसकी परिणति जरा-वृद्धावस्था और मृत्यु की क्रमबद्ध व्यवस्था के अधीन सहज एवं स्वाभाविक रूप से होती है । यद्यपि जन्म लेनेवाले की मृत्यु स्वाभाविक है, किन्तु डॉ० के० आर० चन्द्राजी का निधन सबको व्यथित कर गया । आज वे हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके द्वारा किये गये कार्य और उनके जीवनादर्श हमारे समक्ष उनके सूक्ष्म शरीर के रूप में विद्यमान हैं । विद्या के क्षेत्र में उनके द्वारा की गयी सेवाओं को निश्चित ही युगों तक याद किया जायेगा ।
गुणग्राह्यता तथा सत्यान्वेषी गहन साहित्योपासना इन दोनों दृष्टियों से डॉ० के० आर० चन्द्रा का जीवन एक आदर्श विद्यापुरुष का जीवन रहा है । सर्वांगीण अध्ययन एवं संशोधनात्मक विद्योपासना के प्रति निष्ठा का एक अनूठा आदर्श उन्होंने उपस्थित किया है ।
राजस्थान में जन्मे, पर प्रथम कार्यक्षेत्र बना चेन्नाई (मद्रास, तामिलनाडु) । नागपुर (विदर्भ) एवं मुजफ्फरपुर (बिहार) में जैनविद्या का अध्ययन किया और कर्मभूमि बनी अहमदाबाद (गुजरात) । इस प्रकार विविध प्रदेशों में प्रवासी रहे डॉ० चन्द्रा विविध प्राकृत भाषाओं के संशोधक बनें यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है । उनके नाम पर भी मद्रासी प्रभाव पड़ा है । उनका मूल नाम रिखबचंद (ऋषभचन्द्र) कस्तुरचंदजी जैन था उससे हुआ के० ऋषभचन्द्र जैन और बाद में हुआ डॉ० के० आर० चन्द्र, यह है उनका गतिशील अखिल भारतीय परिचय ।
राजस्थान के सिरोही जिले की शिवगंज तहसील में पालडी नाम के गाँव में श्रेष्ठी श्री कस्तुरचंदजी पन्नाजी जैन के गृह में २८ जून १९३१ को डॉ० चन्द्रा का जन्म हुआ । बचपन का नाम था रिखबचंद जैन । जब वे चार वर्ष के थे तभी उनकी पूज्य माताजी का देहान्त हो गया । एक बड़ा भाई सेसमल था वह भी बचपन में ही चल बसा । ऐसी अवस्था में ऋषभचन्द्र का लालन-पालन पिताजी के हाथ से उनकी एक मात्र संतान के रूप में हुआ ।
गाँव की ही शाला में प्राथमिक शिक्षण प्राप्त करके कक्षा ८ तक शिवगंज की सरकारी माध्यमिक शाला में और हाईस्कूल का अध्ययन सिरोही की कॉल्विन हाईस्कूल में किया और अजमेर बोर्ड से मेट्रिक की परीक्षा १९४७ में पास की । इन्टरमीडिएट (कक्षा ११ और १२) की परीक्षा प्राईवेट अध्ययन कर अजमेर बोर्ड से १९४९ में पास की। बी० ए० का अध्ययन महाराणा भूपाल कॉलेज, उदयपुर में किया और राजस्थान विश्वविद्यालय से बी. ए. की उपाधि प्राप्त की ।
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