SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कायोत्सर्ग, प्रत्याख्यान), दशविध धर्म, परीषहजय। इ. जैनयोग और आचार का आधार : कर्मसिद्धान्त :- कर्म का अर्थ, जीव और कर्म, कर्मों के भेद, कर्म-विपाक, कर्म-विपाक के प्रकार, कर्मों की अवस्थाएँ (बन्ध, संक्रमण, उदवर्तना, अपवर्तना, सत्ता, उदय, उदीरणा, उपशमन, निधत्ति, निकाचना)। ई भाग्य, पुरुषार्थ और कर्म। पंचम अध्याय : आध्यात्मिक विकासक्रम १८८-२४६ अ. पातञ्जलयोग-मत :- क्षिप्तचित्त, मूढ़चित्त, विक्षिप्तचित्त, एकाग्रचित्त, निरुद्धचित्त। आ. जैनयोग-मत :- गुणस्थान - अर्थ व स्वरूप, गुणस्थान-परम्परा, गुणस्थान क्रमारोहण का मुख्य आधार, मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, सासादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थान, सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान. देशविरति गुणस्थान, सर्वविरति गुणस्थान, अप्रमत्तसंयत गुणस्थान, अपूर्वकरण गुणस्थान, अनिवृत्ति-सम्पराय गुणस्थान, सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान, उपशान्तमोह गुणस्थान, क्षीणमोह गुणस्थान, सयोगिकेवली गुणस्थान, अयोगिकेवली गुणस्थान; आत्मा की तीन अवस्थाएँ - बहिरात्मा, अन्तरात्मा, परमात्मा; त्रिविध उपयोग; दृष्टि-विभाजन - ओघदृष्टि, योगदृष्टि; योगदृष्टियाँ और योगांग - मित्रादृष्टि और यम, तारादृष्टि और नियम, बलादृष्टि और आसन, दीप्रादृष्टि और प्राणायाम, स्थिरादृष्टि और प्रत्याहार, कान्तादृष्टि और धारणा, प्रभादृष्टि और ध्यान, जैनयोग में ध्यान, ध्यान के भेद-प्रभेद - आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान, धर्मध्यान के भेद - आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय, संस्थानविचय (पिण्डस्थध्यान, पदस्थ ध्यान, रूपस्थध्यान, रूपातीतध्यान); धर्मध्यान की मर्यादाएँ - भावना, देश, काल, आसन, आलम्बन, क्रम, ध्यातव्य, ध्याता, अनुप्रेक्षा, लेश्या, लिंग एवं फल; शुक्लध्यान, शुक्लध्यान के भेद - पृथक्ववितर्क-सविचार, एकत्ववितर्क अविचार, सूक्ष्मक्रिया अप्रतिपाती. समुच्छिन्नक्रियानिवृत्ति, परादृष्टि और समाधि; मन की अवस्थाएँ।। षष्ठ अध्याय : सिद्धि-विमर्श २४७-२६३ अ. पातञ्जलयोग-मत :- यमों से प्राप्त सिद्धियाँ, नियमों से प्राप्त सिद्धियाँ, आसन से प्राप्त सिद्धि, प्राणायाम से प्राप्त सिद्धि, प्रत्याहार से प्राप्त सिद्धि, धारणा, ध्यान और समाधि रूप संयम से प्राप्त सिद्धियाँ, जन्म से प्राप्त सिद्धियाँ, औषधिजन्य सिद्धियाँ, मंत्र से उत्पन्न सिद्धियाँ, तप से उत्पन्न सिद्धियाँ, समाधिजन्य सिद्धियाँ। आ. जैनयोग-मत :- बुद्धिऋद्धि, विक्रियाऋद्धि या वैक्रियऋद्धि. क्रियाऋद्धि, तपऋद्धि, बलऋद्धि, औषधऋद्धि, रसऋद्धि, क्षेत्रऋद्धि। सप्तम अध्याय : पातञ्जलयोग एवं जैनयोग में परस्पर साम्य-वैषम्य एवम् वैशिष्ट्य २६४-२७६ सन्दर्भ ग्रन्थ सूची २८०-२६७ विशिष्टव्यक्तिनामानुक्रमणिका २६८-३०० ग्रन्थानुक्रमणिका ३०१-३०५ शब्दानुक्रमणिका ३०६-३२६ XV Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001981
Book TitlePatanjalyoga evam Jainyoga ka Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAruna Anand
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2002
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy