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सम्पादकीय प्राक्कथन
प्रथम अध्याय :
१. पातञ्जलयोग-पद्धति
२. जैन साधना-पद्धति
३. पातञ्जलयोग-पद्धति और जैन साधना-पद्धति : एक तुलनात्मक सर्वेक्षण
४. पातञ्जलयोग- साहित्य
पातञ्जल एवं जैन-योग-साधना पद्धति तथा सम्बन्धित साहित्य १ - ४६
५. जैनयोग- साहित्य
६. प्रमुख जैनाचार्यों का व्यक्तित्व एवं कृतित्व
अ. हरिभद्रसूरि
आ. आचार्य शुभचन्द्र
इ. हेमचन्द्रसूरि ई. उपाध्याय यशोविजय
द्वितीय अध्याय :
विषयानुक्रमणिका
१. योग : व्युत्पत्ति एवं अर्थ
२. योग का स्वरूप
योग का स्वरूप एवं भेद
अ. पातञ्जलयोग-मत आ. जैनयोग-मत
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३. योग के भेद
अ. पातञ्जलयोग-मत :- सम्प्रज्ञातयोग, सम्प्रज्ञातयोग के भेद - वितर्कानुगतसम्प्रज्ञातयोग, विचारानुगतसम्प्रज्ञातयोग, आनन्दानुगतसम्प्रज्ञातयोग, अस्मितानुगतसम्प्रज्ञातयोगः असम्प्रज्ञातयोग, असम्प्रज्ञातयोग के भेद
भवप्रत्यय, उपायप्रत्यय ।
आ. जैनयोग-मत :- सर्वधर्म-व्यापारयोगः प्रणिधानादि पांच आशय - प्रणिधान, प्रवृत्ति, विघ्नजय, सिद्धि, विनियोगः निश्चय व्यवहारयोग; इच्छादि त्रिविध योग - इच्छायोग, शास्त्रयोग, सामर्थ्ययोग; अध्यात्मादि पंचविध योग - अध्यात्मयोग, (जप, आत्म-संप्रेक्षण, देववन्दन, प्रतिक्रमण, भावनानुचिन्तन), भावनायोग, ध्यानयोग, समतायोग, वृत्तिसंक्षययोगः तात्त्विकादि षड्विध योग - तात्त्विक और अतात्त्विकयोग, सानुबन्ध और निरनुबन्धयोग, सास्रव और अनास्रवयोग: स्थानादि पंचविध योग स्थान, ऊर्ण, अर्थ, आलम्बन, अनालम्बनः स्थानादि पंचविध योग के भेद एवं उपभेद; कर्मयोग और ज्ञानयोग ।
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