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________________ परिप्रेक्ष्य में योग के आद्य उपदेष्टा तथा प्रवर्तक के विषय में विचार करते हुए काल-प्रवाह से योग के क्रमिक विकास की जानकारी दी गई है तथा पातञ्जलयोग एवं जैनयोग के परस्पर साम्य, वैषम्य एवं वैशिष्ट्य को स्पष्ट किया गया है। पृथक्-पृथक् समय में प्रमुख जैनाचार्यों ने समान, असमान एवं विशिष्ट मान्यताओं के आधार पर योग का जो वर्णन किया है, वह जैन तथा जैनेतर योग के विकास में अद्भुत है, और वर्तमान में इसको व्यवहार में लाने की महती आवश्यकता है। यह मेरा परम सौभाग्य है कि डॉ० (श्रीमती) टी.एस. रुक्मिणी, पूर्व प्राचार्या, मिरांडा हाउस, दिल्ली विश्वविद्यालय ने अत्यन्त व्यस्त रहते हुए भी पातञ्जलयोग एवं जैनयोग का तुलनात्मक अध्ययन करने में मेरा सम्यक मार्गदर्शन किया। उसके लिए मैं उनका हार्दिक आभार प्रकट करती हूँ। डॉ० दामोदर शास्त्री, भूतपूर्व अध्यक्ष, जैनदर्शन विभाग, लालबहादुर शास्त्री केन्द्रिय संस्कृत विद्यापीठ, दिल्ली ने अपने सत्परामर्शों द्वारा जैनदर्शन के मर्म को समझाने में अपना अनन्य सहयोग प्रदान किया। उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन उनके महत्व को कम करना होगा। मैं मुनि श्री यशोविजयजी, पन्यास श्री पद्मविजयजी, मुनि श्री नगराजजी, मुनि श्री महेन्द्र कुमारजी, श्री पुष्करमुनिजी, श्री देवेन्द्रमुनिजी आदि की अत्यन्त ऋणी हूँ जिनके ज्ञान तथा स्नेहमय आशीर्वचनों से मैं सदा प्रोत्साहित होती रही। इसके अतिरिक्त परम आदरणीय डॉ० नथमल टाटिया, डॉ० सागरमल जैन, डॉ ब्रह्ममित्र अवस्थी, डॉ० छगनलाल शास्त्री तथा पं० राधेश्याम शास्त्री आदि विद्वानों की भी कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने समय-समय पर अपना अप्रत्याशित सहयोग प्रदान किया। __भारतीय विद्याओं के मनीषी, पद्मविभूषण, विद्वद्वर्य परमपूज्य पंडित दलसुख मालवणिया जी की मैं विशेष ऋणी हूँ, जिन्होंने मेरे प्रबन्ध का अत्यन्त सूक्ष्म दृष्टि से परीक्षण कर कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये। उनका वरदहस्त सदा मेरा मार्ग प्रशस्त करेगा। साथ ही मैं जैनविद्या के प्रसिद्ध विद्वान् प्रो० विमल प्रकाश जैन की भी अत्यन्त आभारी हूँ, , क्योंकि उन्होंने इस ग्रन्थ का संशोधन करने में मेरा यथेष्ट मार्गदर्शन किया है। प्रस्तुत कृति पेता श्री देसराज आनन्द की सतत प्रेरणा एवं माता श्रीमती कृष्णा आनन्द के शुभाशीर्वाद एवं त्याग तथा अनुज अजय के विशिष्ट सहयोग का ही परिणाम है। अतः उनके प्रति आभार व्यक्त करना मेरे लघुत्व का ही सूचक होगा। भोगीलाल लहेरचन्द भारतीय संस्कृति संस्थान, दिल्ली के भतपर्व निदेशक डॉ० नीलरत्न बेनर्जी: उपाध्यक्ष, श्री नरेन्द्र प्रकाश जैन, डॉ० जितेन्द्र बाबूलाल शाह; प्रबन्ध समिति के सदस्य श्री राजकुमार जैन तथा शैक्षणिक सलाहकार डॉ० धनेश जैन व प्रो० प्रेत सिंह की भी कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने इसे संस्था की प्रकाशन-माला के पुष्प के रूप में स्वीकार करके मुझे तथा मेरी कृति को गौरवान्वित किया है। मैं संस्था के उपनिदेशक, डॉ० कमलेश जैन की भी आभारी हूँ क्योंकि उन्होंने प्रूफ रीडिंग करके टंकण की गलतियों को सुधारने में मेरी मदद की है। __ अन्त में मैं उन सब विद्वानों एवं सहयोगियों का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ, जिन्होंने इस कृति के प्रणयन में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से अपना सद्भाव एवं सहयोग प्रदान किया तथा मुझे सदा प्रोत्साहित किया। अरुणा आनन्द २६६, रामाकृष्णा विहार २६, इन्द्रप्रस्थ विस्तार दिल्ली - ११००६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001981
Book TitlePatanjalyoga evam Jainyoga ka Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAruna Anand
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2002
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size25 MB
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