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________________ व्यवहार-चारित्र अधिकार (साधना अधिकार ) [ कर्म-योग] इस समता रूप परमार्थ चारित्र की प्राप्ति के लिए साधना अपेक्षित है। प्रयत्नपूर्वक अशुभ क्रियाओं से बचना और शुभ के प्रति जागरूक रहना ही वह साधना है, जिसे शास्त्रों में व्यवहार-चारित्र कहा गया है। साधक ही नहीं, पूर्णकाम ज्ञानी भी कदाचित् किसी कारणवश उसका आचरण करता है। क्रियात्मक होते हुए भी लक्ष्य सत्य होने के कारण पहले को, और अहंकारशून्य होने के कारण दूसरे को, वह बन्धनकारी नहीं होता है। साधनाधिकार ७ चारित्र का स्थान १. व्यवहार-चारित्र निर्देश १३९. असुहादो विणिवित्ती, सुहे पवित्ती य जाण चारित्तं । वदसमिदिगुत्तिरूवं, ववहारणयादु जिण भणियं ।। द्र०सं०। ४५ तु० - उत्तरा०।३१.२ अशुभात् विनिवृत्तिः, शुभे प्रवृत्तिः च जानीहि चारित्रम् । व्रतसमितिगुप्तिरूपं, व्यवहारनयात् तु जिनभणितम् ॥ अशुभ कार्यों से निवृत्ति तथा शुभ कार्यों में प्रवृत्ति, यह व्यवहार नय से चारित्र का लक्षण है। वह पाँच व्रत, पाँच समिति और तीन गुप्ति, ऐसे तेरह प्रकार का है। २. मोक्षमार्ग में चारित्र (कर्म) का स्थान १४०. थोवम्मि सिक्खिदे जिणइ, बहुसदं जो चरित्तसंपुण्णो। जो पुण चरित्तहीणो, कि तस्स सुदेण बहुएण ।। मू० आ०। ८९७ (१०.६) तु० = दे० आगे की गा० १४१ स्तोके शिक्षिते जयति, बहुश्रुतं यश्चारित्रसम्पूर्णः। यः पुनश्चारित्रहीनः, किं तस्य श्रुतेन बहुकेन ॥ चारित्र से परिपूर्ण साधु थोड़ा पढ़ा हुआ भी क्यों न हो, बहुश्रुत को भी जीत लेता है। परन्तु जो चारित्रहीन है, वह बहत शास्त्रों का जाननेवाला भी क्यों न हो, उसके शास्त्रज्ञान से क्या लाभ ? १४१. सुबहुं पि सुयमहीयं, किं काही चरणविप्पहीणस्स। अंधस्स जह पलित्ता, दीवसयसहस्सकोड़ी वि ॥ वि० आ० भा० । ११५२ तु० = मू० आ० । १०.४५ सुबह्वपि श्रुतमधोतं, किं करिष्यति चरणविप्रहीनस्य । अन्धस्य यथा प्रदीप्ता, दोपशतसहस्रकोटिरपि। भले ही बहुत सारे शास्त्र पढ़े हों, परन्तु चारित्रहीन के लिए वे सब किस काम के ? हजारों करोड़ भी जगे हुए दीपक अन्धे के लिए किस काम के? For Private & Personal use only Jan Education International www.jainelibrary.org
SR No.001976
Book TitleJain Dharma Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarva Seva Sangh Prakashan Rajghat Varanasi
PublisherSarva Seva Sangh Prakashan
Publication Year
Total Pages112
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size7 MB
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