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ग्रन्थ-परिचय "बुद्ध और महावीर भारतीय आकाश के दो उज्ज्वल रत्न हैं। .... "बुद्ध और महावीर दोनों कर्मवीर थे। लेखन-वृत्ति उनमें नहीं थी। वे निर्ग्रन्थ थे। कोई शास्त्र-रचना उन्होंने नहीं की। पर वे जो बोलते जाते थे, उसीमें से शास्त्र बनते जाते थे, उनका बोलना सहज होता था। उनको बिखरी हुई वाणी का संग्रह भी पीछे से लोगों को एकत्र करना पड़ा।"
"बुद्ध-वाणी का एक छोटा-सा संग्रह 'धम्मपद' नाम से दो हजार साल पहले हो चुका था, जो बुद्ध समाज में ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया में भगवद्गीता के समान प्रचलित हो गया है।" ___धम्मपद काल-मान्य हो चुका है । 'महावीर-वाणी' भी हो सकती है, अगर जैन समाज एक विद्वत्परिषद् के जरिये पूरी छानबीन के साथ उनके वचनों का और उनके क्रम का निश्चय करके एक प्रमाणभूत संग्रह लोगों के सामने रखे। मेरा' (विनोबा का) जैन समाज को यह एक विशेष सुझाव है। अगर इस सूचना पर अमल किया गया, तो जैन-विचार के लिए जो पचासों किताबें लिखी जाती हैं, उनसे अधिक उपयोग इसका होगा।" ___"ऐसा अपौरुषेय संग्रह जब होगा तब होगा। पर तब तक पौरुषेय संग्रह व्यक्तिगत प्रयत्न से जो होंगे, वे भी उपयोगी होंगे।"
ये हैं भारत-आत्मा सन्त विनोबा के जैनधर्म के प्रति कुछ उद्गार, जो उन्होंने जैनधर्मके सुप्रसिद्ध विद्वान् पं० वेचरदासजी कृत, 'महावीरवाणी' नामक पुस्तक की प्रस्तावना में व्यक्त किये हैं। _ 'तत्त्वार्थ-मूत्र' निःसन्देह जैन-दर्शन का एक अद्वितीय ग्रन्थ है, परन्तु सूत्रात्मक होने के कारण वह भारत की वर्तमानयुगीन आत्मा को सन्तुष्ट नहीं कर पा रहा है। प्रस्तुत ग्रन्थ बाबा की शुभ भावना
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