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स्थानकवासी संप्रदाय का जीवनानुभव
(८३)
मेरी बातों से लगा कि मैं कुछ विशेष अध्ययन करने की इच्छा रखता हूँ। पर वह कैसे और कहाँ किया जाय इसका मुझे कोई खयाल नहीं था । वह ३-४ वर्ष मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में रहा और उस सम्प्रदाय की प्रथानुसार उसने जीव विचार, नवतत्व आदि प्राकृत प्रकरण कंठस्थ किये थे । उस सम्प्रदाय में प्रचलित श्रमण सूत्र अर्थात् साधु प्रतिक्रमण सूत्र का भा पूरा पाठ कंस्थ किया था और फिर संस्कृत भाषा के अध्ययन को दृष्टि से सारस्वत व्याकरण का भी कितनाक भाग सिख लिया था ।
जिन साधुओं के पास उमने वह दीक्षा ली थी वे उस सम्प्रदाय में एक बहुत अच्छे विद्वान माने जाते थे, और वे उक्त राजेन्द्र सूरि के एक विशिष्ट शिष्यों में से थे, उन्होंने कुछ पुस्तकें भी लिखी, छपवाई थी। उस सम्प्रदाय को कुछ जानकारी प्राप्त करने की दृष्टि से मैंने उसके साथ कुछ विशेष सख्य भाव धारण किया। उसका नाम उस समय रंगलाल था और जिस संप्रदाय का छोड़कर वह पाया था उस सम्प्रदाय का उसका दीक्षित नाम रंगविजय था। मैं मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के प्राचार व्यवहार के बारे में कुछ भी नहीं जानता था । उनका भेष कैसा होता है यह सर्व प्रथम चालीस गांव में उक्त साधु को देखा तब मुझे कुछ आभास हा इतना मैं जरूर जानता था कि मूर्तिपूजक साधु मन्दिरों में जाते हैं और तीर्थकरों की मुर्तियों को नमस्कार प्रा|द करते रहते हैं, यति संसर्ग के कारण मुझे जैन मन्दिर तया तीर्थकरों को मूर्ति और उनकी पूजा अादि करने का मुझे ठीक परिचय था। पर उस साधु धर्म के बारे में कोई विशेष ज्ञान नहीं था । रंगलाल से मैंने धीरे-धीरे यह सब बातें जानने का प्रयास किया ।
स्थानकवासी सम्प्रदाय में ठीक ठीक संस्कृत भाषा जानने वाला कोई साधु मैंने नहीं देखा मना । रतलाम में प्रथम बार उस कोन्फेन्स में जो छोटे - बड़े ४०-५० साधु इकठू हए थे. उनमें कोई भी संस्कृत का विद्वान नहीं देखा । जैन आगमों के प्रर्थों का अच्छा ज्ञान रखने वाले तो कई साधु जानने में पाए परंतु वे सब भाषा में लिखे गए सूत्रों के टवार्थ पढ़-पढ़ कर ही उनका ज्ञान रखते थे । और बोल-चाल की भाषा में कुछ पुराने साधुओं ने जो प्रकरणात्मक थोकड़े बना रखे थे उनके द्वारा ज्ञान प्राप्त करते रहते थे ।
मैंने जब यह सुना कि बूर्तिपूजक साधु संस्कृत के बड़े विद्वान होते हैं और सूत्रों पर पुराने प्राचार्यों की बनाई हुई संस्कृत टिकाए पढ़ते रहते है तथा जीव विचार नवतत्व, क्षेत्र समास, संग्रणी सूत्र कर्म ग्रन्थ मादि अनेक प्रकरण ग्रंथ जो प्राकृत भाषा में बने हुए हैं उनका भी अच्छा अच्छा अध्ययन वे करते रहते है ।
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