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मेरो जीवन प्रपंच कथा
होते । हमने तो उसके कुछ मुख्य मुख्य ३-४ विभाग ही देखे और समय हो जाने पर हम वापस अपने स्थान पर चले आए, जीवन में ऐसे बड़े कारखाने के सुनने का भी कोई प्रसंग नहीं पाया था इसलिए मुझे तो ऐसा भास हुआ कि हमने आज कोई अद्भुत जादू सा भरा हुमा काम देखा है । बाद के जीवन में तो जर्मनी जैप क्रप के कारखाने को भी देखने का मौका मिला और उसके आगे, भुसावल का यह कारखाना हाथी के आगे खरगोस के जितना, मालूम दिया । परन्तु जीवन में यह प्रथम दर्शन था । इसलिए उसका स्मरण चित्र सदैव मन पर अकित रह गया । जैनसाधु के धर्म के प्राचार के मुताविक तो ऐसा कारखाना जिसमें अग्निकाय, वायुकायु तथा कीड़े मकोड़े आदि त्रसकाय जैसे असंख्य जोवों का संहार होता हो, देखना अथवा देखने को इच्छा करना भी पाप कर्म का बन्द माना जाता है। उस जीवन चर्या में तो मैंने फिर कभी कोई वैसा कारबाना आदि देखने का कोई प्रसग प्राप्त नहीं किया। यहां तक की पुस्के छापने वाली प्रिन्टिग मशीनों को भी देखने का प्रसंग नहीं लीया। मन में ये जिज्ञासा पिछले वर्षों में तो जरूर उत्पन्न होने लगी थी। कि ये छोटी-बड़ी अनेक पुस्तकें कैसे छापी जाती हैं । इत्यादि !
कुछ दिन भुसावल में ठहरकर हमने आगे दक्षिण की ओर प्रयाण किया। जलगांव, पांचोरा होते हुए हम वाघली नामक एक कस्बे में पहुँचे। फाल्गुन के दिन थे, हम साधुओं ने वहाँ केशलोच किया । वहाँ के श्रावक कुछ भावुक थे, और वहां पर किसी जैन साधु ने कभी चातुर्मास नहीं किया था इससे उन श्रावकों ने हमें वहाँ चातुर्मास करने के लिए प्रात्याग्रह किया। श्रावकों ने सुना था कि तपस्वोजी चातुर्मास में ५०-६० दिनों जैसों लम्बी तपस्या किया करते रहते हैं
और इस कारण अनेक गांवों से सैंकड़ों श्रावक भाई-बहन उनके दर्शन के लिए आया-जाया करते हैं । इसलिए वाघली में चातुर्माप होने पर हमारे गांव में भी सैंकड़ों भाई-बहनों का प्रावागमन होगा और हमको उनकी भक्ति आदि करने का उत्तम प्रसंग मिलेगा। तपस्वोजी ने श्रावकों के आग्रह के कारण आने वाला चातुर्मास वहाँ करने का विचार किया और श्रावकों को अर्धसम्मति सी बताई । वहाँ से हम चालीस गांव पहुँचे ।
चालीस गांव में मूर्तिपूजक साधु का दर्शन
चालीस गांव में शायद स्थानकवासी भाईयों के कोई घर नहीं थे वहाँ पर कपास पीलने को तीन-चार जीनींग फैक्टरियाँ थीं। जिनके मालिक कच्छी जैन भाई थे। वे कच्छी जैन भाई
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