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________________ ( ५२ ) मानो मौन धारण किये हुए चले जा रहे थे। पैरों में कुछ थकावट सी भी मालूम हो रही थी, परन्तु किसी तरह उस चौकी पर पहुँचना है यही मुख्य लक्ष्य था । इसलिए न थकावट और न भूख प्यास का ही कोई विचार मन में प्राता था। उस ऊँची सी पहाड़ी से हम लोग जल्दा जल्दो नीचे उतरे और फिर एक पानी का अच्छा नाला सा आया, उसमें पानो कल-कल करता बह रहा था, परन्तु बीच-बीच में बड़े२ पत्थर पड़े हुए थे, इसलिए उन पत्थरों पर पैर रखते हुए हमने उस ना को पार किया। फिर तीसरो पहाड़ी की चढ़ान शुरू हुई। वह भी दूसरी पहाड़ी की तरह विषम और पथरीली थी झाड़ी भी खूब सघन थी पर इस झाड़ी के कारण हमें सूर्य का ताप नहीं सताता था । कोई ४ बजे के करीब हम तीसरी पहाड़ी की चोटी पर पहुँचे वहां पर चौकीदार बैठा और हमें भी कुछ विश्रान्ति लेने को कहा और बताया कि यह सामने जो चौथी छोटी सी पहाड़ी दिखाई देती है उसकी चोटी पर वह बड़ी चौकी है । हमको वहाँ पहुँचते पहुँचते करीव डेड घण्टा और लगेगा । मेरो जोवन प्रपंच कथा ५-१० मिनिट की विश्रन्ति के बाद हम लोग आगे चलने लगे। इस चोटी पर से नीचे उतरे तब एक छोटी सी नदो प्रायी । इसमें काफी पानी बह रहा था, परन्तु बीच-बीच में पत्थर की कुछ चट्टानें और बड़े बड़े पत्थर आदि थे जिससे हमें नदी पार करने में कोई विशेष दिक्कत उठानी नहीं पड़ी । चौकीदार ने तो नदी में मुँह वैगरह धोया और अच्छी तरह पानी के कुल्ले आदि कर पेट भर कर पानी पोया । हम तो तृपापरीसह का स्मरण करते हुए कुछ विश्रान्ति ही का आनन्द लेते रहे । फिर तैयार होकर आगे बढ़ने लगे अत्र जो पहाड़ी चढ़नी थी, वह उतनी ऊँची नहीं थी और उस पर झाड़ियाँ, घास, आदि भी इतनी सघन नहीं थी । पर थकावट का जोर बढ़ता जा रहा था इसलिए यह चढ़ाई पिछली सब चढ़ाईयों की अपेक्षा अधिक कठिन प्रतीत हो रही थी। धीरे-धीरे हम चौथी पहाड़ी की चोटी पर पहुँचे तब वह बड़ी चौकी हमें दिखाई दी । चौकीदार ने कहा कि ये जो कुछ झोंपड़े और दो तीन खपरेल वाले मकान दिखाई देते हैं वही बड़ी चौकी है। कोई आधे घण्टे में हम वहां पहुँच जायेंगे । आकाश की तरफ हमने देखा तो सूर्य भी जल्दी जल्दी नीचे उतरता जा रहा था । हमने भी उसी की तरह जल्दी जल्दी वह पहाड़ी उतरनी शुरू की । सूर्यास्त होते२ हम उस चौकी के नजदीक जा पहुँचे । वहां का मुख्य चौकीदार अपने -पास के कुए पर रहट चला रहा था और खेत को पानी पिला रहा था। पास में दो-तीन प्रादिवासी मजदूर बैठे-बैठे तम्बाकू पी रहे थे । हमको दूर से आते देखकर वह चौकीदार घबरा सा गया और पास में बैठे हुए लोगों को कहा कि अरे ! देखो, दौड़ो ये डाक्कू से कौन आरहे हैं, उतने में उसने हमारे आगे-आगे चलने वाले उस चौकीदार को जब देखा तब वह कुछ स्वस्थ सा हुआ और सोचने लगा कि क्या यह चौकीदार जंगल में से किन्हीं चौरों को पकड़कर ला रहा है ? और इनके मुँह आदि बांध दिये हैं ? इतने में हमारा साथ वाला चौकीदार उसके पास पहुँच गया और उसने मुजरा यादि कर थेले मेंसे कागज निकालकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001970
Book TitleMeri Jivan Prapanch Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1971
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size8 MB
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