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________________ ( ४२ ) मेरी जोवन प्रपंच कथा सीढ़ियों से उतर कर पास वालो गली मेंसे निकल कर चुपचाप कहीं चला गया इत्यादि ।" सुनकर श्रावक भाई बड़े खिन्नं हुए। कहने लगे कि , क्या यह मुन्नालाल महाराज को अपने भाई के चरित्र के विषय में कुछ ज्ञान नहीं था? इन्होंने क्या सोचकर उसको दीक्ष लेने के लिए तैयार किया और २-४ हजार रुपये श्रावकों के नाहक के खर्च कराये तपस्वीजी उडे कलेजे से बोले कर्म की विचित्र गति को किसको खबर होतो है ?. परन्तु श्रावकों को इस बात का कुछ भो प्रचार न करना चाहिये और जाने कुछ हुया हो नहीं । इस तरह मन मार कर चलना चाहिये । परन्तु ऐसी बात एकदम छिपी कैसे रहे। वह चला गया. इसका तो किसी को ज्यादा अफसोस न हुअा क्योंकि ऐसे 'किस्से तो अनेक बार हुग्रा करते हैं । परन्तु जो हमार-पाँच सौ का, कपड़े आदि का कीमती माल उठा गया था उसका. इन बनियों को. ज्यादा अफसोस हुग्रा क्योंकि ये सारा सामान एक प्रागेवान सेठ के वहाँ का था। घण्टे भर बाद जब यह बात उस सेठ को मालूम हुई तो वे भी तुरन्त स्थानक में पाए । ___ सेठ समाज में एक प्रामेवान और प्रतिष्ठित व्यक्ति कहलाते थे। समाज के हर एक काम में लोग उनको आगे करते और उनके पास से पैसे प्रादि की सहायता लेते थे । सेठ इन्दौर के सर्राफा बाजार के एक नामी राजमान्य धनिक माने जाते थे, सेठ हमेशा बहुत ठाठ-पाठ से रहते थे। स्थानक में आये तब तपस्वीजी को वन्दना की और मुह के आगे खेस रख कर गम्भीर भाव से पूछने लगे। कौनपे शब्दों द्वारा उन्होंने गुरूजी को सम्बोधित किया उसकी तो प्राज मुझको ठीक' स्मृप्ति नहीं हैं परन्तु, सेठ के पहनावे और हावभाव का तादृश्य चित्र मेरे मन पर ययावत चित्रित है । सेठ के साथ दो-तीन अन्य वैसे आगेवान व्यक्ति भी थे। सेठ की उम्र कोई ६०६५ वर्ष जितनी थो। गौरवर्ज, मध्यम कदका शरीर, लम्बो नाक अोर चौडी अखे चमका करती थों ।। उन्होंने, :शरीर पर. धनवान लोग पहना करते हैं वैसे ऊची जात की मलमल का मालवा ढग का अंगरखा पहन रखा था । नीचे चूड़ीदार सफेद दूध के झाग जैसे कपड़े का बना पाईजामा पहने हुए थे और पैरों में अच्छी जात के मौजे थे। अंगरखे पर गले में एक कीमती पन्नों की माला पहन रखी थी। हाथ में किमती होरे और मानेक का अंगुठियाँ पहनो हुई थों । कानों में गोल सोने के कुण्डल जैसे थे, जिनके बीच में पन्ना और मानेक जैसो किमती रत्न लटक रहे थे । सेठ ने धीमी आवाज से तपस्वीजी महाराज को जैसे ठपका देते हो वैसे शब्द' कहने लगे"साधुओं को चेलानी का बड़ा मोह होता है और जो पाया उसको मुण्डवा कर साधु बनाने का प्रयत्न करते रहते हैं । योग्य अयोग्य की परीक्षा साधु कभी नहीं करते और दीक्षा के बहाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001970
Book TitleMeri Jivan Prapanch Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1971
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size8 MB
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