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________________ ( 30 ) पर सूड सु० ऐसा उसका नाम लिखा हुआ था । चूंकि मैं तब संस्कृत भाषा से सर्वथा अपरिचित था, इसलिये उसका विषय आदि क्या है, उसका मुझे कुछ ज्ञान नहीं हो सका । मैं केवल सूड़ • शब्द को पढ़ सका- प्रागे का जो सू० अक्षर था उसको मैंने कल्पना से समझा कि यह कोई सूड० सूत्र नाम का खास ग्रन्थ है इसका अर्थ समझाने वाला वहां कोई नहीं था । इसलिये में बहुत वर्षो तक सूड० सूत्र को याद रखता रहा । मेरी जोवन प्रपंच कथा इसी ग्रन्थ संग्रह के साथ एक पुराने लकड़ी के बक्से में कुछ छुपी हुई पुस्तकें रखी हुई मैंने देखी उनमें दशवैकालिक और उत्तराध्ययन सूत्र की मूल पाठ वाली छपी पुस्तिकाएँ प्रथम बार मैंने देखी । कुछ थोकड़ों के संग्रह वाली भी एक छपी हुई पुस्तिका मेरे देखने में आई । मैंने उनको अपने पास रख लिया । उनमें एक पुराने लिथो प्रेस में गुजराती अक्षरों में छपी एक पुस्तक मैंने देखी, जिसका नाम 'पंच प्रतिक्रमणादि सूत्र' में पढ़ सका । उस सम्प्रदाय में प्रचलित केवल एक ही प्रतिक्रमण सूत्र का मुझे ज्ञान था । ये पंच प्रतिक्रमण कौन से हैं और इनका क्या विषय है इसका मुझे कोई ज्ञान नहीं हुआ । उन पुस्तकों के साथ कुछ दो चार बडी छपो पुस्तकें भी मेरे देखने में आई । जिनके नाम – १. जैन तत्त्वादर्श, २. तत्त्व निर्णय प्रासाद, ३. अज्ञानतिमिर भास्कर आदि थे । ये पुस्तकें श्री आत्मारामजी उर्फ श्री विजयानंद सूरि की बनाई हुई थी। इन पुस्तकों को तो मैंने अपने उज्जैन वाले अन्तिम चौमासे में पढ़ी जिसका वर्णन उस प्रसंग में किया जायगा । उज्जैन के चातुर्मास में एक विचित्र घटना का अनुभव जिस चातुर्मास का में यह वर्णन लिख रहा हूँ, उसमें एक नव दीक्षित साध्वी के जीवन की करुणाजनक विचित्र घटना का अनुभव हुआ । उस समय उक्त सम्प्रदाय के अनुगामी साध्वी-वर्ग की चार पांच साध्वियों का वहाँ चातुर्मास था । उनका स्थानक भी उसी लूणमण्डी गली में, साधुत्रों के स्थानक से कोई पाँच दस मकानों के बाद था। मुख्या साध्वीजी अच्छी प्रौढ़ उमर वाली थी और उनकी तीन चार चेलियां थी । क्योंकि साध्वियां तपस्वीजी महाराज के गुरू सम्प्रदाय की थी, इसलिये उनका भक्तिभाव तपस्वी जी आदि साधुओं की तरफ होना स्वाभाविक ही था । इस नाते मुझ पर भी उनको श्रद्धा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001970
Book TitleMeri Jivan Prapanch Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1971
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size8 MB
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