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स्थानकवासी संप्रदाय का जीवनानुभव
(२१)
में मुहर्रम के दिन बहुत बड़े पैमाने पर ताबूतों का जुलूस बरसों से निकलता रहा है । राज्य की और से भी बहुत बड़ा ताबूत बनवाया जाता था। जिसके बनाने में आठ दस महिने तक कई कारीगर लगे रहते थे । राज्य का यह ताबूत बड़े राजशाही ठाठ से निकाला जाता था। इसे देखने के लिये प्रासपास के अनेक गांवों से हजारों लोग आते रहते थे। उस जुलूस में राज्य का, घुड़ सवार और पैदल मिलिट्री का पूरा लवाजमा, बड़ी सजधज के साथ निकलता था। उस समय देशी राज्यों में होल्कर राज्य की मिलिट्रो पहले नम्बर में गिनी जातो थो उस मिलिट्री का पूरा दब दबा उस दिन दिखाया जाता था ।
। मेरे पास कुछ युवक थावक लड़के पाकर बैठते थे । उन्होंने कहा चेलाजी महाराज आर भी इस जुलूस को देखने चलें। मैंने कहा-भाई हम साधु ऐसे जुलूस देखने को कहाँ जायें? तब उनमें से एक नव युवक ने कहा कि हमारा घर उसी बाजार में है जिसके आगे हो कर वह पूरा जुलूस गुजरेगा। आप दो तीन घण्टे ग्राकर हमारे घर की ऊपर को मंजिल में पाकर बैठे और यह जुलूस देखें । सुन कर मेरा मन एक दम उत्कठित हो गया और मैंने तपस्वीजो महाराज से कहा कि आप प्राज्ञा दें तो मैं आज उस ताबूत के जुलूस को अवश्य देखना चाहता हूँ । न जाने क्यों तपस्वीजी ने हाँ भर ली और कहा--तू और मोतीलालजी दोनों छोटे साधु चले जाप्रो और देख आयो । सुन कर मोतीलालजी के पिता साधु मुन्नालाल जो बोले-महाराज मुझे भी आज्ञा हो तो मैं इन दोनों बाल साधुओं के साथ चला जाऊ । तास्त्री जी ने हो भरली ।
हम जल्दी जल्दी पाहार पानो करके उस युवक के साथ उसके घर पर चले गये। उस बाजार में हजारों लोग सुबह से ही ठठ्ठ जमे हुए थे। इन्दौर के सरकारो ताबूत का जुलूस देखना उस इलाके में एक प्रसिद्ध प्रसंग समझा जाता था। हम लोग श्रावक के घर पहुँच कर उसकी दूकान की ऊपर वाली मंजिल में खिड़कियों के पास बैठ गये। धीरे धीरे जुलूस के आने की हल चल बढ़ने लगी । हजारों लोग इधर उधर दौड़ धूप कर रहे थे। इतनी बड़ो मानव मेदिनी और की ऐसी चहल पहल मैंने जिन्दगी में पहली बार देखो जिसमे मेरे मन का कुतूहल भी इसी तरह उछल कूद करने लगा।
कोई दो बजे के लगभग जुलूस की अगवानो आने लगी पहले मुसलमानों द्वारा बनाये गये अनेक छोटे बडे ताबूत निकलने शुरू हुए । उसके पोछे मुख्य मस्जिद में बनाये गये ताबूत को सवारी आई, उसके साथ हजारों मुसलमान तरह तरह के खेल कूद करते हुए चल रहे थे। अनेकों के हाथों में नंगी तलवारें थीं और वे इन्हें इस तरह से घुमाते जाते थे कि जिसे देख कर
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