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मेरो जोबन प्रपंच कथा
था । पर इस नूतन साधु जीवन में विचारों का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो रहा था। उनको लेकर मनो मन्थन भी खूब होता रहा। मैं जीवन के किसी विशाल कार्य क्षेत्र की खोज में लगने लगा अन्त में महात्मा गांधीजी ने सन् १९२० में भारत की आजादी के लिए और अंग्रेजों की शासन सत्ता को उखाड़ फेकने के लिए देशव्यापी जो असहकार आन्दोलन शुरू किया, उसमें सक्रिय सहयोग देने का मेरा निर्णय हुमा । तद्नुसार मैंने उस नूतन साधु वेष का भी परित्याग कर दिया। क्यो और कैसे मह परित्याग किया-इसकी तो बहुत बड़ी लम्बी चर्चा है, परन्तु संक्षेप में, जब मैंने राष्ट्रीय आन्दोलन में जुट जाने का दृढ़ विचार किया, तब मुझे लगा कि अपने स्वीकृत साधु वेष का त्याग करके ही देश सेवा का कार्य अंगीकृत करना चाहिये । उस साधु धर्म के प्राचारानुसार मेरा देश सेवा वाला कार्य संगत नहीं लगता था । अतः मैंने स्वयं महात्माजी के साथ इस विषय में विचार विमर्श किया तथा मेरे अनेक विचारक एवं विद्वान मित्रों के साथ भो ऊहापोह किया । बाद में मैंने अखबारों में अपने वेष परिवर्तन करने वाले विचारों और कारणों का भी प्रसिद्धीकरण किया । यों उस सम्प्रदाय में मेरा काफी सम्मान था । अनेक विद्वान् लेखक, विचारक एवं पत्रकार मेरे घनिष्ट मित्र थे। कई विषयों के प्रौढ़ ग्रन्थ मैंने सम्पादित एवं प्रकाशित किये थे । अजैन विद्वानों में भी मेरा अच्छा सम्मानित स्थान बन गया था । श्वेताम्बर
म्प्रदाय के विचारकों के अतिरिक्त दिगम्बर सम्प्रदाय के तथा स्थानकवासी सम्प्रदाय के भी कई नवीन विचारधारक बन्धु मेरे प्रशंसक हो गये थे । ऐसी स्थिति में भी जब राष्ट्र सेवा के कार्य में संलग्न होने का मेरा दृढ़ विचार हुआ तो मैंने साधु धर्म के प्राचार के साथ उसकी संगतता न समझकर उस वेष का परित्याग करना ही उचित समझा। तद्नुसार मैं उस वेष को उतार कर एक राष्ट्रीय सेवक के अनुरूप खद्दर का लम्बा झब्बा पहन कर * महात्माजी के साथ बम्बई से गाड़ी में बैठ गया और उनके साथ ही अहमदाबाद के उनके सत्याग्रह आश्रम में पहुँच कर उन्हीं की कुटिया में बैठकर मैंने अपने वेष परिवर्तन का मानसिक अानन्द मनाया तथा माता कस्तूरबा के पुण्य हाथों से परोसी गई थाली में भोजन कर जीवन की कृतार्थता का अनन्य अनुभव प्राप्त किया।
यह मेरे वेष परिवर्तन की दूसरी प्रपंचात्मक संक्षिप्त कथा है ।
* नोट-उस समय जैसा अनेक राष्ट्रीय सेवक खद्दर का मटीले रंग का घुटने तक लम्बा कुर्ता पहना करते थे वैसा ही मैंने अपना वेष स्वीकार किया। वही वेष मेरा आजन्म रहा है उसके बाद, युरोप-गगन के सिवाय मुझे अपने उस वेष में किसी प्रकार के परिवर्तन करने की कोई आवश्यकता नहीं हुई ।
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