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________________ राष्ट्रपति बाबू राजेन्द्रप्रसादजी ने श्रीमुनिजी को “पद्मश्री' प्रदान कर इनका सम्मान किया। सन् 1963 में 'भारतीय विद्या भवन'' बम्बई ने आपको सम्मानित सदस्य नियुक्त कर आपकी सेवाओं के प्रति विशिष्ठ सम्मान प्रदर्शित किया। इस संक्षिप्त जीवनी में सैकड़ों ऐसे पहलू हैं जिनका वर्णन स्थानाभाव के कारण नहीं हो सका है। हो भी कैसे, साधक हर क्षण जीवन से जूझता है / उसका हर क्षण भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनकर अनन्त में विलीन हो जाता है / श्रीमुनिजी की साधना और लम्बी तपस्या से हमें यही सबक मिलता है / यों तो दुनिया एक सराय है-एक आता है, एक जाता है पर अपने प्रत्यक्ष अनुभव से कह सकता हूँ कि श्रीमुनिजी ने इस संसार में रहकर सभी की भलाई की है / मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में था / वहाँ अनेक प्रोफ़ेसरों से निकट का संबंध रहा / जब-जब मैंने उन्हें बताया कि जयपुर, जोधपुर में श्रीमुनिजी के दर्शनों का अवसर मिला, वे तुरन्त नतमस्तक होकर मेरे इस सौभाग्य से ईर्ष्या करने लगते थे। मैं सुख का अनुभव करता था। कई बार राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरणजी गुप्त, पं० बनारसीदासजी चतुर्वेदी, श्री दिनकर आदि श्रीमुनिजी महाराज की चर्चा करते रहते थे। गुप्तजी बड़े सहज में कहा करते थे कि हमारे बीच श्रीमुनिजी ऐसे तपर बी व्यक्ति का लौटना असम्भव है। बड़ी प्रसन्नता की बात है कि श्रीमुनिजी महाराज अभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001969
Book TitleJinvijayji ka Sankshipta Jivan Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1971
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size1 MB
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