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में भारतीय विद्या भवन का कार्य शुरू करने का संकल्प किया गया। - कलकत्ते के श्री बाबू बहादुरसिंह जी सिंघवी ने गुरुदेव की इच्छा को पुनः दुहराया और श्रीमती मोतीबेन व. अन्य ८-१० बालकों को लेकर श्रीमुनिजी शांति-निकेतन पहुँचे । गुरुदेव बड़े प्रसन्न हुए और विद्या-भवन के प्रधानाचार्य महामहोपाध्याय श्री विधुशेखर शास्त्री से कहकर श्रीमुनिजी के निवास आदि का बड़ा उत्तम प्रबन्ध करवाया। सिंघीजी के पिता श्री डालचन्दजी सिंघी के नाम से वहाँ पर जैन छात्रालय की स्थापना करवाई । विद्या-भवन में 'जैन चेयर' स्थापित कर उसका संचालन श्रीमुनिजी ने किया। कुछ दिनों बाद जैन छात्रालय और 'चेयर' निमित्त एक स्वतंत्र मकान भी शान्ति-निकेतन में बनवाने का निश्चय किया। जिसका शिलान्यास स्वयं गुरुदेव के हाथों सम्पन्न हुआ । यहाँ से सुप्रसिद्ध विश्वविख्यात "सिंघी जैन ग्रन्थ माला' का कार्य श्रीमुनिजी ने प्रारम्भ किया । इस जैन छात्रालय में कलकत्ते के भी अनेक जैन छात्र व विद्वान् प्रविष्ठ हुए। "सिंघी जैन ग्रंथमाला'' का मुद्रण कार्य बम्बई के सुप्रसिद्ध "निर्णय-सागर प्रेस' से करवाया जाता था। कलकत्ते आदि में ऐसे योग्य प्रेस का अभाव था। माला के लिए अच्छे-अच्छे हस्तलिखित ग्रंथों के चयन के लिए श्रीमुनिजी पाटण के भंडारों का निरीक्षण करते रहे । पूना के भांडारकर प्राच्य शोध संस्थान के प्राचीन साहित्य का भी अवलोकन करने जाना पड़ता था। प्रायः ४ वर्ष शान्ति-निकेतन में रहने के कारण, इतना अधिक
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