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१९२२-२३ ई. के लगभग पूना में जैन शिक्षण संघ नामक संस्था की स्थापना की और उसके द्वारा कुमार विद्यालय चलाना शुरू किया । पूना से प्रकाशित 'जैन जागृति' पत्र का हिंदी व गुजराती में संपादन किया । 'महावीर' नाम से एक मुद्रणालय खोलने का भी श्रीमुनिजी ने आयोजन किया ।
१९२४-२५ ई. में श्रीमुनिजी ने अपना मुख्य केन्द्र अहमदाबाद बना लिया । "जैन साहित्य संशोधक" की प्रकाशन-व्यवस्था ग्रहमदाबाद में कर ली । १६२५-२६ ई. के मध्य जर्मनी के सुप्रसिद्ध विद्वान् प्रो. ल्यूर्डस् और प्रो. शूविंग आदि "गुजरात पुरातत्त्व मंदिर" की साहित्यिक गतिविधियों का परिचय प्राप्त करने ग्रहमदाबाद आए । इन विद्वानों से निकट का सम्पर्क हो जाने से मुनिजी के मन में जर्मनी जाने की इच्छा उत्पन्न हुई । महात्माजी से अनुमति माँगी गई और उन्होंने अपने युरोपियन मित्रों के नाम परिचयात्मक पत्र भी लिख कर श्रीमुनिजी को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी ।
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मई १९२८ ई. में श्रीमुनिजी ने बम्बई से जर्मनी के लिये प्रस्थान किया । जहाज़ निकल पड़ा और पेरिस होते हुए उन्होंने लंदन में अपना पहला ग्रावास किया । कोई चार महीने वहाँ रहे और "ब्रिटिश म्यूज़ियम " को देखा । लंदन से प्रस्थान कर बेल्जियम, ब्रूसेल्स आदि होते हुए जर्मनी के हैम्बर्ग नामक स्थान पर पहुँचे । यहाँ डॉ. याकोबी, प्रो. ग्लेसनैप और प्रो. शूबिंग से मिलना हुआ। प्रो. शूबिंग के
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