________________
वंश परिचय
[११
का सुप्रसिद्ध इतिहास आया । उस समय उपलब्ध, उस महान् ग्रन्थ का हिन्दी रूपान्तर मैंने पढ़ा उसमें राजस्थान के जिन प्राचीन राजवंशों का जो विवरण दिया गया है उसमें आबू के अनलकुंड से उत्पन्न परमार वंश का भी वर्णन पढ़ने को मिला, चूंकि मेरा भी जन्म परमार वंश में हुआ है अतः इस वंश के विषय में अधिकाधिक जानकारी प्राप्त करने की मेरी जिज्ञासा बढ़ने लगी ।
बचपन में एक बार पिताजी के साथ घोड़ी पर चढ़कर, आबू के अचलेश्वर महादेव के दर्शन करने के निमित्त गया था, उसका भी मुझे स्मरण था ही फिर तो आगे आगे परमार वंश के इतिहास का अध्ययन बढ़ता गया । मध्यकाल में परमार राजपूतों के कहाँ २ राज्य स्थान बनें, इस विषय की भी छोटी बड़ी अनेक पुस्तकें पढ़ीं । परन्तु मेरे निकटवर्ती पूर्वज, अर्थात् दादा परदादा और उनके दादा पड़दादा कहाँ रहते थे और कहाँ उनका निवास स्थान आदि था, इसकी जानकारी न हो सकी ।
मेवाड़ और उसके निकटवर्ती अजमेर प्रदेश में कुछ पंवार ( परमार ) जाति के राजपूतों के छोटे छोटे ठिकाने हैं ऐसी जानकारी मुझे स्वर्गीय महा महोपाध्याय गोरीशंकर जी ओझा ने दी थी । उन्होंने सूचित किया था कि अजमेर के पास श्रीनगर नामक एक स्थान है जो किसी समय परमारों की जागीर का स्थान था । सन् १८५७ के सैनिक विद्रोह के समय अजमेर प्रान्त के कुछ निकटवर्ती राजपूतों के ठिकानों को अंग्रेजी सेना ने नष्ट कर दिये थे, ऐसा भी कुछ उल्लेख म० म० ओझा जी ने बताया था ।
मुझे अपने दादा तखतसिंह जी पिता बड़दसिंह जी और उनके काका के बेटे इन्दरसिंह जी के नाम ठाम का कुछ ज्ञान था । इसमे अधिक कोई विशेष जानकारी नहीं थी । अतः मैं इस बात का पता लगाना चाहता था कि दादा तखत्सिंह जी के पिता आदि कौन थे । उनका निवास स्थान श्रादि कहाँ था, उनके अन्यान्य भाई बन्धु आदि कौन २ थे ? कहाँ के रहने वाले थे ? तखत्सिंह जी क्यों रूपाहेली
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org